गुरु-गरिमा है सिंधु सम,गुरु विराट आकाश।
गुरु-प्रसाद है दिव्यतम,पा हो ज्ञान-प्रकाश।।
गुरु समान हैं मातु-पितु,प्रथम बोल के स्रोत।
मातु-पिता-गुरु चंद्र सम,अन्य लोग खद्योत।।
सकल ज्ञान-विज्ञान का,होता गुरु से बोध।
करे सीख गुरु से मिली,जीवन में नव शोध।।
ऋषि-मुनि,संत-असंत सब,कर निज गुरु-सम्मान।
कुशल-निपुण होकर सदा,पाए जग-पहचान।।
ब्रह्मा-विष्णु-महेश ही,गुरु-गरिमा को जान।
गुरु ही तो जग ब्रह्म है,रखो सदा गुरु-मान।।
लख विकास निज शिष्य का,प्रमुदित बस गुरु होय।
बंधु-बांधव-अन्य जन,जलते आपा खोय ।।
लेकर गुरु-आशीष ही,होते लोग महान।
गुरु के बिना न ज्ञान-सर,होता कभी नहान।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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