डॉ0 हरि नाथ मिश्र

जीवन-सपना पूरा होता,


यदि तुम कहीं नहीं जाते तो।


अपनी प्रीति सफल हो जाती-


तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।


 


और नहीं कुछ माँगे थे हम,


केवल माँगे थे प्यार ज़रा।


नहीं सुने तुम विनय हमारी,


हृद-भाव न जाने प्रेम भरा।


यादें तेरी नहीं सतातीं-


नहीं ख़्वाब में यदि आते तो।


      तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।


 


कितनी प्यारी दुनिया लगती,


प्यारे चाँद-सितारे भी सब।


बाग-बगीचे,वन-उपवन सँग,


झील-नदी-सर-झरने भी तब।


खग-कलरव सँग मधुकर-गुंजन-


अति प्रिय लगते यदि गाते तो।


    तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।


 


राग-रागिनी की धुन मधुरिम,


धीरे-धीरे दिल बहलाती।


कड़क दामिनी गगन मध्य से,


विरह-ज़ख्म रह-रह सहलाती।


हरित भाव सब उर के होते-


बादल बन यदि बरसाते तो।


      तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।


 


पुष्प-वाटिका बिना भ्रमर के,


रीती-रीती सी लगती है।


बिना गुलों के गुलशन की छवि,


फ़ीकी-फ़ीकी सी रहती है।


जीवन-उपवन फिर खिल जाता-


बन भौंरा यदि मँडराते तो।


       तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।। प्रिती


 


बिना प्रीति के मानव-जीवन,


बहुत अधूरा सा लगता है।


तम छँट जाता प्रेम-दीप जब,


प्यारा पूरा सा जलता है।


ज्योतिर्मय हो जाता जीवन-


यदि आ दीप जला जाते तो।


     तुम यदि प्रीति निभा पाते तो।।


                 © डॉ0हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


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