डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तीसरा अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-8


 


रह अचेत सोवत पुरवासी।


नंदहिं गोकुल गाँव-निवासी।।


    अस लखि तब बसुदेवा तुरंता।


    जसुमति-खाटहिं रखि भगवंता।।


तहँ तें लइ कन्या नवजाता।


बंदीगृह आए जहँ माता।।


    कन्या सुता देवकी-सैया।


     जसुमति-खाटहिं किसुन कन्हैया।।


निज पगु बँधि बेड़ी-जंजीरा।


गए बैठि तहँ धरि हिय धीरा।।


    सकीं न जानि जसोदा माता।


    कइसन अहहि तासु नवजाता।।


लइका अथवा लइकी अहही।


माया-जोग अचेतइ रहही।।


दोहा-जे केहु धारन प्रभु करै, हिय रखि प्रेम अपार।


         जग-बेड़ी-बंधन कटै,जाय सिंधु-भव पार।।


         जमुन-नाम कृष्ना अहहि,कृष्न जमुन कै नीर।


         अस बिचार करि जमुन-जल,कृष्न हेतु भे थीर।।


        सूर्यबंस मा जब रहा,राम प्रभुहिं अवतार।


        चंद्र पिता बाँधे रहे,सागर-नीर अपार।।


        चंद्रबन्स अब प्रभु अहहिं, सुता अहहुँ मैं भानु।


        अस बिचार जमुना भईं,थीर प्रभुहिं पहिचानु।।


        कहहिं जगत-सत्पुरुष सभ,रख जे हिय भगवान।


        लहहि अलौकिक सुख उहहि,रहइ उ पुरुष-प्रधान।।


       ह्रदय प्रभुहिं रखि जमुन-जल,भे पुनीत जल-नीर।


       करतै मज्जन जेहि मा,सुचि मन होय सरीर।।


                   डॉ0हरि नाथ मिश्र


                     9919446372


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