तीसरा अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-8
रह अचेत सोवत पुरवासी।
नंदहिं गोकुल गाँव-निवासी।।
अस लखि तब बसुदेवा तुरंता।
जसुमति-खाटहिं रखि भगवंता।।
तहँ तें लइ कन्या नवजाता।
बंदीगृह आए जहँ माता।।
कन्या सुता देवकी-सैया।
जसुमति-खाटहिं किसुन कन्हैया।।
निज पगु बँधि बेड़ी-जंजीरा।
गए बैठि तहँ धरि हिय धीरा।।
सकीं न जानि जसोदा माता।
कइसन अहहि तासु नवजाता।।
लइका अथवा लइकी अहही।
माया-जोग अचेतइ रहही।।
दोहा-जे केहु धारन प्रभु करै, हिय रखि प्रेम अपार।
जग-बेड़ी-बंधन कटै,जाय सिंधु-भव पार।।
जमुन-नाम कृष्ना अहहि,कृष्न जमुन कै नीर।
अस बिचार करि जमुन-जल,कृष्न हेतु भे थीर।।
सूर्यबंस मा जब रहा,राम प्रभुहिं अवतार।
चंद्र पिता बाँधे रहे,सागर-नीर अपार।।
चंद्रबन्स अब प्रभु अहहिं, सुता अहहुँ मैं भानु।
अस बिचार जमुना भईं,थीर प्रभुहिं पहिचानु।।
कहहिं जगत-सत्पुरुष सभ,रख जे हिय भगवान।
लहहि अलौकिक सुख उहहि,रहइ उ पुरुष-प्रधान।।
ह्रदय प्रभुहिं रखि जमुन-जल,भे पुनीत जल-नीर।
करतै मज्जन जेहि मा,सुचि मन होय सरीर।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें