डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-9


 


लखि बहु चकित-थकित निज सेना।


कह खर-दूषन कोमल बैना ।।


    सचिव बुला कहहि एतबारा।


    लागत ई कोउ राजकुमारा।।


बहु सुर-असुर,नाग-मुनि देखे।


जीति मारि बहु नरन्ह बिसेखे।।


    कोउ नहिं अस सुंदर जग माहीं।


    जिन्ह तुलवहुँ नृप-बालक आहीं।।


जदपि कृत्य तिसु छिमा न जोगू।


श्रुति-नासा कटि सकत सँजोगू।।


     लेहु चोरा जा तिरिया तासू।


     कहहु लवटि जा गृहहिं निरासू।।


सुनि सनेस दूतन्ह अस रामहिं।


निज मन बातिन बिहँसि सुनावहिं।।


     हम आखेट हेतु बन बसहीं।


     छत्री-सुत हम कबहुँ न डरहीं।।


हो बलवंत भले रिपु मोरा।


डरहुँ न काल,हतउँ तन तोरा।।


    तुम्ह सम हिंसक पसु बन खोजहुँ।


    मिलहिं जे बन मा तिनहिं दबोचहुँ।।


हम मुनि-पालक जद्यपि बालक।


खल-कुल-दनुज होंहिं हम घालक।।


     जदि मन कह न लरन तुम्ह सबकै।


      जाहु प्रसन्न होहि तनि-तनि कै।।


हतउँ न केहू बिनु जुधि कइ के।


बधहुँ तिनहिं खलु लरहिं जे चढ़ि के।।


      जुधि रिपु-कृपा होय कदराई।


      मो सम जोधा कबहुँ न भाई।।


अस सुनि खर-दूषन भय क्रोधित।


निकसे जुद्ध करन बिनु रोधित।।


दोहा-लेइ असुर-दल चलि पड़े,खर-दूषन दोउ भ्रात।


        'मार'-'मार' उद्घोष कर,रन-भुइँ महँ बलखात।।


                      डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


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