तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-9
लखि बहु चकित-थकित निज सेना।
कह खर-दूषन कोमल बैना ।।
सचिव बुला कहहि एतबारा।
लागत ई कोउ राजकुमारा।।
बहु सुर-असुर,नाग-मुनि देखे।
जीति मारि बहु नरन्ह बिसेखे।।
कोउ नहिं अस सुंदर जग माहीं।
जिन्ह तुलवहुँ नृप-बालक आहीं।।
जदपि कृत्य तिसु छिमा न जोगू।
श्रुति-नासा कटि सकत सँजोगू।।
लेहु चोरा जा तिरिया तासू।
कहहु लवटि जा गृहहिं निरासू।।
सुनि सनेस दूतन्ह अस रामहिं।
निज मन बातिन बिहँसि सुनावहिं।।
हम आखेट हेतु बन बसहीं।
छत्री-सुत हम कबहुँ न डरहीं।।
हो बलवंत भले रिपु मोरा।
डरहुँ न काल,हतउँ तन तोरा।।
तुम्ह सम हिंसक पसु बन खोजहुँ।
मिलहिं जे बन मा तिनहिं दबोचहुँ।।
हम मुनि-पालक जद्यपि बालक।
खल-कुल-दनुज होंहिं हम घालक।।
जदि मन कह न लरन तुम्ह सबकै।
जाहु प्रसन्न होहि तनि-तनि कै।।
हतउँ न केहू बिनु जुधि कइ के।
बधहुँ तिनहिं खलु लरहिं जे चढ़ि के।।
जुधि रिपु-कृपा होय कदराई।
मो सम जोधा कबहुँ न भाई।।
अस सुनि खर-दूषन भय क्रोधित।
निकसे जुद्ध करन बिनु रोधित।।
दोहा-लेइ असुर-दल चलि पड़े,खर-दूषन दोउ भ्रात।
'मार'-'मार' उद्घोष कर,रन-भुइँ महँ बलखात।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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