डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-5


 


पुनः चले आगे प्रभु रामा।


संग सीय, लछिमन बलधामा।।


     ऋषि-मुनि बृंद राम सँग चलहीं।


      प्रभु-संसर्ग परम सुख पवहीं।।


नर-कंकाल-ढेर मग देखा।


प्रभु-हिय खिन्न-बिषाद बिसेखा।।


     भरि जल दृगन मुनिन्ह तें पूछहिं।


      कारन कवन बता बिनु सोचहिं।।


मुनि तब कहे असुर अस करहीं।


जगि करि नासु मुनिन्ह ते मरहीं।।


     सभ कंकाल मुनिन्ह कै हउवै।


      करम निंद्य असुरन्ह कै भउवै।।


तब प्रभु हस्त उठा प्रन करहीं।


निसिचर-नासु अवसि अब भवहीं।।


     सिष्य अगस्ति राम मग मिलही।


     जाकर नाम सुतीछन रहही।।


सिष्य सुतीछन रह बड़ भागी।


राम-दरस पायो बिनु माँगी।।


     बिनु जगि-तप अरु भगति-बिरागा।


     ग्यान-ध्यान-प्रभु-पद-अनुरागा।।


बिनु ब्रत-त्याग-धरम अरु नेमा।


नहिं कोउ पाइ सकत प्रभु-प्रेमा।।


    अस सोचत मग नाचत-गावत।


     दिकभ्रम होइ चलत मुनि धावत।।


अस विह्वल गति जानि मुनी कै।


लइ तरु-ओट लखहिं प्रभु वहि कै।।


     औचक जनु प्रभु धरि हिय ध्याना।


     भे अचेत जनु निकसा प्राना ।।


राम जानि तेहिं बहु झकझोरा।


जागै नहिं मुनि परम कठोरा।।


     प्रेम बिबस प्रभु तिसु हिय प्रगटे।


      रूप चतुर्भुज धरि तिन्ह लिपटे।।


होइ अचंभित मुनि जब जागे।


राम-लखन-सिय देखहिं आगे।।


    परम भागि प्रभु दरसन दीन्हा।


    मों सम दीन भगत प्रभु चीन्हा।।


पुनि मुनि प्रभु-गुन बहुत बखाना।


बिमल भगति बर प्रभु तें पाना।।


दोहा-लेइ लखन-सिय-राम कहँ,आश्रम गए सुतीक्ष्ण।


        रहहिं जहाँ गुरु कुम्भजइ, ब्रह्म-सक्ति-बल तीक्ष्ण।।


        राम कहे मुनि- दरस को,गए बहुत दिन बीत।


        दरस-लाभु मैं पाइ के,मेटहुँ टीस अतीत ।।


        जा सुतीक्ष्ण मुनि अगस्त्य पहँ, कहहि बिनू बिश्राम।


        मुनिवर तव दरसन-ललक,धरि हिय आयो राम।।


                        डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


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