डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-15


 


कह मरीच सुनु रावन भ्राता।


बैर राम सँग तुमहिं न भाता।।


     राम-लखन अतुलित बलधामा।


     बधि सुबाहु किय कौसिक-कामा।।


कीन्ह ताड़का बध ते तबहीं।


सर चढ़ाइ फेंके मों असहीं।।


     छिन भर मा मैं आयहुँ इहवाँ।


     सत जोजन जनु उड़ि तें तहवाँ।।


बैर-बियाहहि औरु मिताई।


समता करहु त होय भलाई।।


     रावन कहा सुनहु मारीचा।


     सिखा न मोंहि तू ऊँचा-नीचा।।


जदि तू कहा सुनउ नहिं मोरा।


तोर परान जगत बस थोरा।।


     थोरे मा समुझा मारीचा।


     रावन बड़ पापी अरु नीचा।


सुगति मृत्यु नहिं रावन-कर तें।


बड़ भल होय मरउँ प्रभु-सर तें।।


     अवसर पाइ राम कह सीता।


     सुनहु प्रिये मम जीवन-मीता।।


लछिमन अबहिं गयो बन माहीं।


कंद-मूल-फल आनय ताहीं।।


     बसहु अगिनि मा सीते तबतक।


     असुरन्ह बधि लौटहुँ मैं जबतक।।


नर-लीला अब बन मैं करऊँ।


पापी-अघी-निसाचर बधऊँ।।


दोहा-सीता कीन्ह प्रबेस तब,तुरत अगिनि बन माहिं।


         वहि स्वरूप,वहि रूप-रँग, पीछे छाँड़ि के ताहिं।।


                    डॉ0 हरि नाथ मिश्र।


                      9919446372


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