तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-15
कह मरीच सुनु रावन भ्राता।
बैर राम सँग तुमहिं न भाता।।
राम-लखन अतुलित बलधामा।
बधि सुबाहु किय कौसिक-कामा।।
कीन्ह ताड़का बध ते तबहीं।
सर चढ़ाइ फेंके मों असहीं।।
छिन भर मा मैं आयहुँ इहवाँ।
सत जोजन जनु उड़ि तें तहवाँ।।
बैर-बियाहहि औरु मिताई।
समता करहु त होय भलाई।।
रावन कहा सुनहु मारीचा।
सिखा न मोंहि तू ऊँचा-नीचा।।
जदि तू कहा सुनउ नहिं मोरा।
तोर परान जगत बस थोरा।।
थोरे मा समुझा मारीचा।
रावन बड़ पापी अरु नीचा।
सुगति मृत्यु नहिं रावन-कर तें।
बड़ भल होय मरउँ प्रभु-सर तें।।
अवसर पाइ राम कह सीता।
सुनहु प्रिये मम जीवन-मीता।।
लछिमन अबहिं गयो बन माहीं।
कंद-मूल-फल आनय ताहीं।।
बसहु अगिनि मा सीते तबतक।
असुरन्ह बधि लौटहुँ मैं जबतक।।
नर-लीला अब बन मैं करऊँ।
पापी-अघी-निसाचर बधऊँ।।
दोहा-सीता कीन्ह प्रबेस तब,तुरत अगिनि बन माहिं।
वहि स्वरूप,वहि रूप-रँग, पीछे छाँड़ि के ताहिं।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र।
9919446372
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