डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-3


 


अति बिनम्र तब छूईं सीता।


मुनि-पत्नी-पद परम पुनीता।।


    मुनि-पत्नी अनुसुइया हर्षित।


    सीय-रूप लखि बहु आकर्षित।।


देइ असीष निकट बैठाईं।


सीता पा सनेस मुस्काईं।।


     लेइ बसन-भूषन अति नूतन।


     पहिरावहिं सिय हर्षित तन-मन।।


दिब्य बस्त्र धारन करि सीता।


दीखहिं जनु छबि-धाम पुनीता।।


    नारी-धरम सियहिं तब जाना।


    अनुसुइया जब तिन्ह बतलाना।।


बिधिवत नारी-धरम-कहानी।


ऋषि-पत्नी त्रिय-चरित बखानी।।


    कहहिं मातु अनुसुइया सीतहिं।


    आवै काम नारि बहु बिपतहिं।।


बिपति-काल जे धीरज खोवै।


नहिं कोउ मीत तासु कै होवै।।


     धरम बिपति महँ होय सहाई।


     दइ बिबेक मन-चित्त जगाई।।


तुम्ह सम जग मा नहिं कोउ नारी।


नेमी-ब्रती,पती-ब्रत-धारी।।


     तुम्हरो नाम सुमिरि जग नारी।


     रखिहहिं पति-ब्रत सोचि-बिचारी।।


ऋषि-पत्नी सभ कहीं कहानी।


मधुर-सुकोमल-सीतल बानी।।


      सीता-राम-लखन मुनि-चरना।


      छूइ गमन बन चाहहिं करना।।


दोहा-दइ असीष मुनि अत्रि तब,कहहिं सुनहु प्रभु राम।


        भव-सागर जग तीरही, सुमिरि-सुमिरि तव नाम।।


        अंतरजामी राम तुम्ह,जानउ सबकर भेद ।


         धरम-सास्त्र-बिद,नीति-बिद,लिखा रहइ जे बेद।।


                         डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                             9919446372


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