तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-3
अति बिनम्र तब छूईं सीता।
मुनि-पत्नी-पद परम पुनीता।।
मुनि-पत्नी अनुसुइया हर्षित।
सीय-रूप लखि बहु आकर्षित।।
देइ असीष निकट बैठाईं।
सीता पा सनेस मुस्काईं।।
लेइ बसन-भूषन अति नूतन।
पहिरावहिं सिय हर्षित तन-मन।।
दिब्य बस्त्र धारन करि सीता।
दीखहिं जनु छबि-धाम पुनीता।।
नारी-धरम सियहिं तब जाना।
अनुसुइया जब तिन्ह बतलाना।।
बिधिवत नारी-धरम-कहानी।
ऋषि-पत्नी त्रिय-चरित बखानी।।
कहहिं मातु अनुसुइया सीतहिं।
आवै काम नारि बहु बिपतहिं।।
बिपति-काल जे धीरज खोवै।
नहिं कोउ मीत तासु कै होवै।।
धरम बिपति महँ होय सहाई।
दइ बिबेक मन-चित्त जगाई।।
तुम्ह सम जग मा नहिं कोउ नारी।
नेमी-ब्रती,पती-ब्रत-धारी।।
तुम्हरो नाम सुमिरि जग नारी।
रखिहहिं पति-ब्रत सोचि-बिचारी।।
ऋषि-पत्नी सभ कहीं कहानी।
मधुर-सुकोमल-सीतल बानी।।
सीता-राम-लखन मुनि-चरना।
छूइ गमन बन चाहहिं करना।।
दोहा-दइ असीष मुनि अत्रि तब,कहहिं सुनहु प्रभु राम।
भव-सागर जग तीरही, सुमिरि-सुमिरि तव नाम।।
अंतरजामी राम तुम्ह,जानउ सबकर भेद ।
धरम-सास्त्र-बिद,नीति-बिद,लिखा रहइ जे बेद।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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