डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-13


 


धिक भाई तव बल-बुधि-ग्याना।


समुझि न सकत बहिन-अपमाना।।


     कस हम रहब नाक बिनु काना।


     रहि ना सकब खोइ पहिचाना।।


सुनि अस बाति बहिन- मुख रावन।


जरि-भुनि उठा जरै जस कानन ।।


     पूछा उठि दसकंधर भगिनी।


     मोंहि बता अस केकर करनी।।


कोसलेस दसरथ- सुत दोऊ।


मुख सुंदर बल केहरि होऊ।।


     जनु आखेट करन बन आए।


     तिन्हकर करनी मो नहिं भाए।।


चाहहिं जनु महि मुक्त-निसाचर।


पाइ तिनहिं मुनि फिरैं बिनू डर।।


    मैं तिन्ह पहँ यहि कारन गयऊ।


    बूझै मरम जहाँ ते रहऊ ।।


राम नाम दसरथ-सुत ज्येष्ठा।


स्यामल गात सुमुख कुल-श्रेष्ठा।।


     तेहि सँग तिसु पत्नी बड़ नीकी।


     सहस कोटि छबि रति कै फीकी।।


जानि मोंहि भगिनी तव ताता।


नाक-कान काटा लघु भ्राता।।


    खर-दूषन पहँ तब मैं जाई।


    तिनहिं ब्यथा निज मन बतलाई।।


खर-दूषन-त्रिसिरा अरु सेना।


लरे किंतु जुधि जीति सके ना।।


    राम मारि खर-दूषन-त्रिसिरा।


    बधे सबहिं जे इत-उत पसरा।।


खर-दूषन-त्रिसिरा-बध रावन।


सुनि भे क्रोधित औरु डरावन।।


सोरठा-भेजि बहिन समुझाइ,गया भवन निज रावनइ।


            सोइ न पाया जाइ,लखि निज भवन न भावनइ।।


                             डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                              9919446372


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