तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-13
धिक भाई तव बल-बुधि-ग्याना।
समुझि न सकत बहिन-अपमाना।।
कस हम रहब नाक बिनु काना।
रहि ना सकब खोइ पहिचाना।।
सुनि अस बाति बहिन- मुख रावन।
जरि-भुनि उठा जरै जस कानन ।।
पूछा उठि दसकंधर भगिनी।
मोंहि बता अस केकर करनी।।
कोसलेस दसरथ- सुत दोऊ।
मुख सुंदर बल केहरि होऊ।।
जनु आखेट करन बन आए।
तिन्हकर करनी मो नहिं भाए।।
चाहहिं जनु महि मुक्त-निसाचर।
पाइ तिनहिं मुनि फिरैं बिनू डर।।
मैं तिन्ह पहँ यहि कारन गयऊ।
बूझै मरम जहाँ ते रहऊ ।।
राम नाम दसरथ-सुत ज्येष्ठा।
स्यामल गात सुमुख कुल-श्रेष्ठा।।
तेहि सँग तिसु पत्नी बड़ नीकी।
सहस कोटि छबि रति कै फीकी।।
जानि मोंहि भगिनी तव ताता।
नाक-कान काटा लघु भ्राता।।
खर-दूषन पहँ तब मैं जाई।
तिनहिं ब्यथा निज मन बतलाई।।
खर-दूषन-त्रिसिरा अरु सेना।
लरे किंतु जुधि जीति सके ना।।
राम मारि खर-दूषन-त्रिसिरा।
बधे सबहिं जे इत-उत पसरा।।
खर-दूषन-त्रिसिरा-बध रावन।
सुनि भे क्रोधित औरु डरावन।।
सोरठा-भेजि बहिन समुझाइ,गया भवन निज रावनइ।
सोइ न पाया जाइ,लखि निज भवन न भावनइ।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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