चमन की कली जब मुक़म्मल खिली,
मस्त खुशबू से गुलशन गमकने लगा।
भनभनाते भ्रमर पा महक प्रीति की-
प्रेम का भाव दिल में दिये हैं जगा।।
मछलियाँ चंचला भी मचलने लगीं,
खुल परिंदों के पर फड़फड़ाने लगे।
एक सिहरन सी देती हवाएँ नरम-
उलझनों को तुरत मन से दीं हैं भगा।।
झूमता व्योम भी चाँद-तारों सहित,
है उतरता दिखे महि से मिलने गले।
मिटा दूरियाँ दरमियाँ अपनी सारी-
भूल शिक़वे-गिले बन के उसका सगा।।
नव पल्लवों से सँवर वन-विटप भी,
जानो देता सतत यह सन्देशा नया।
प्यारे,काटो नहीं,बस बसाओ हमें-
हैं हमीं तेरी दौलत,न देंगे दगा ।।
वादियों में भी हलचल बहारें करें,
बर्फ भी पा इन्हें लेती अँगड़ाइयाँ।
हो मुदित जल-प्रपातों से बहने लगें-
देख विरही हृदय ख़ुद को समझे ठगा।।
वनों-उपवनों-खेतों-खलिहानों में,
प्रकृति कामिनी-यौवना-नायिका।
हाथ में ले के अपने यह कहती फिरे-
ले लो पत्रक मेरा,प्रेम-रस से पगा।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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