चंदन
चंदन शीतल चंद्र सम,रुचिकर लिए सुगंध।
विषधर का यह प्रिय विटप,पर न गरल-संबंध।।
चंदन-शीतल लेप से,घटे मानसिक ताप।
संत लगा चंदन-तिलक,करें ईश का जाप।।
चंदन शोभा भाल की,करता दिव्य स्वरूप।
मुख-मंडल आभा बढ़े,औषधि एक अनूप।।
दे सुगंध दुर्गंध को,चंदन देव समान।
बनकर व्याल-निवास यह,दे शीतल अनुदान।।
जाती चंदन-लेप से,विरही हिय की पीर।
यह अमोघ औषधि बने,जब हो हृदय अधीर।।
भक्त-संत-प्रेमी सदा,इसका करें प्रयोग।
शुद्ध रखे परिवेश बस,चंदन का उपभोग।।
रक्षा चंदन विटप की,सब जन का है धर्म।
इससे बढ़कर इस समय,और नहीं है कर्म।।
© डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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