तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-4
तब मुनि सीष नवा प्रभु चलहीं।
लइ सिय संग लखन पथ बनहीं।।
आगे राम लखन पुनि पाछे।
तापस-भेष लगहिं सभ आछे।।
ब्रह्म-जीव बिच माया जैसे।
रामहिं-लखन मध्य सिय तैसे।।
जेहि मग राम-लखन मग चलहीं।
प्रकृति मनोरम सुख ते पवहीं।।
मंदहि पवन बहहि प्रभु-पथ मा।
छाया करहिं मेघ पल-पल मा।।
असुर बिराध मिला मग माहीं।
झपकत पलक बधे प्रभु ताहीं।।
राम-प्रताप पाइ रुचि रूपा।
गया असुर प्रभु-धाम अनूपा।।
बन-पथ चलत मुनी सरभंगा।
लखि सिय-लखन राम के संगा।।
बड़-बड़ भागि सरावहिं आपनु।
कहहीं सुफल आजु बन-यापनु।।
अइहैं अवसि राम यहि राहीं।
जब तें सुने रहे हम ताहीं।।
धाम बिरंचि जाइ इक बारा।
भयो साँच आजु एतबारा।।
जोहत रहे बाट दिन-राती।
लखि प्रभु राम जुड़ाइल छाती।।
पूरन होई अब प्रभु-परना।
दरस पाइ हम खोइब बदना।।
जप-तप-जोग-जग्य ऋषि कीन्हा।
प्रबल भगति-बर प्रभु तिन्ह दीन्हा।।
साँवर रूप लखन-सिय सँगहीं।
करहु निवास हृदय मम अबहीं।।
दोहा-लेइ क बर अनुकूल ऋषि,बारे तप-बल आगि।
जारे निज तन अगिनि महँ,धनि-धनि ऋषि कै भागि।।
देखि परम सरभंग-गति,मुनिगन भवहिं प्रसन्न।
पुनि-पुनि भागि सराहहीं, लखि प्रभु तहँ आसन्न।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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