तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-22
इत-उत पुनि बिचरहिं प्रभु रामा।
सिय खोजत बन अथक-अश्रामा।।
लखन सहित प्रभु चहुँ-दिसि ताकैं।
पाइ न सीता इत-उत झाकैं।।
कानन महँ लखि दनुज कबंधा।
हते ताहि प्रभु कीन्ह अबंधा ।।
मोरि भागि दुरबासा सापा।।
पायहुँ मुक्ति राम-परतापा।।
राम भगत-बत्सल-भगवाना।
बनि गंधर्ब कबंधय जाना।।
लखि के निर्छल भगति कबंधा।
प्रभु गंधर्बहिं कीन्ह अबंधा।।
पहुँचे तब प्रभु सबरी-आश्रम।
प्रभु-मग लखत रही जे हरदम।।
स्यामल बदन,माल गर सोहै।
जटा-मुकुट सिर बड़ मन मोहै।।
लखिके राम-लखन मग आवत।
गइ सबरी तहँ धावत-धावत ।।
गौर बरन लछिमन बड़ सोभन।
सुंदर तन,लोचन मन-मोहन।।
बेरि-बेरि प्रभु-लखन निहारय।
सबरी-मुख कछु बचन न आवय।।
पुलकित तन-मन भरि अनुरागा।
पुनि-पुनि प्रभु-सरोज-पद लागा।।
लाइ सुद्ध जल पाँव पखारी।
सुंदर-सुचि आसन बैठारी।।
कंदइ-मूल,सरस फल लइ के।
प्रभुहिं ख़िलावहि प्रमुदित भइ के।।
मम कुल-जाति अधम प्रभु रामा।
मैं अछूत,अवगुन कै ग्रामा ।।
कस मैं करूँ प्रभू तव सेवा।
जानि सकूँ नहिं जग लखि भेवा।।
दोहा-अस बिचार सबरी सुनी, राम कहहिं इक बाति।
मम प्रिय बस निर्छल भगति,कुल न लखहुँ, नहिं जाति।।
जस जल बिनु नीरद नहीं,कांतिहीन जस कंत।
भगतिहीन धन-पद सहित,भाय न मोंहि महंत।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
*********************************
अठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-2
सुनि अस बचन नंद बाबा कै।
गर्गाचार बाति कह मन कै।।
सुनहु नंद जग जानै सोई।
गुरु जदुबंस कुलयि हम होंई।।
कहे नंद बाबा हे गुरुवर।
अति गुप करउ कार ई ऋषिवर।।
'स्वस्तिक-वाचन' मम गोसाला।
अति गुप-चुप प्रभु करउ निराला।।
अति एकांत जगह ऊ अहई।
नामकरन तहँ बिधिवत भवई।।
गुप-चुप कीन्हा गर्गाचारा।
तुरतयि नामकरन संस्कारा।।
'रौहिनेय' रामयि भे नामा।
तनय रोहिनी अरु 'बल'-धामा।।
रखहिं सबहिं सँग प्रेम क भावा।
नाम 'संकर्षन' यहि तें पावा ।।
साँवर तन वाला ई बालक।
रहा सबहिं जुग असुरन्ह-घालक।।
धवल-रकत अरु पीतहि बरना।
पाछिल जुगहिं रहा ई धरना।
सोरठा-नंद सुनहु धरि ध्यान,कृष्न बरन यहि जन्महीं।
नाम कृष्न गुन-खान,रखहु अबहिं यहि कै यहीं।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें