डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-2


 


चित्रकूट जब बहु दिन बीता।


पुनि प्रभु चले लखन अरु सीता।।


    पहुँचे प्रभू अत्रि ऋषि-आश्रम।


    रह अति सुखद तत्र ऋतु आलम।।


जब ऋषि प्रभु आवत मग देखा।


पाए दृग-सुख प्रबल बिसेखा।।


    आगे बढ़ि प्रभु गरे लगावहिं।


    भेंटि प्रभुहिं अतिसय सुख पावहिं।।


राम-लखन-सिय छुइ ऋषि-चरना।


लहहिं असीष जाइ नहिं बरना।।


     ऋषि जुहाय देहिं तिन्ह आसन।


     परसहिं कंद-मूल-फल कानन।।


दोहा-पाइ समादर अत्रि कै, राम-लखन-सिय साथ।


        गदगद चित-मन-तन सहित,नवहिं मुनिहिं निज माथ।।


       राम बड़ाई कीन्ह ऋषि,बहु बिधि अरु बहु भाँति।


       प्रभु उपकारी जनहिं सभ,जाति-भेद नहिं पाँति।।


राम सहाय होंय वहि जन कै।


जे हिय होय भरोसा उन्हकै।।


      जे उर राम-प्रेम नहिं जागा।


      अह असंत ऊ अघी-अभागा।।


बड़े भागि तें मिलै सनेहू।


जग मा कृपा राम केहु-केहू।।


     प्रभु अखिलेस्वर अरु जगदीस्वर।


      प्रभुहिं होंय खलु ईस्वर-ईस्वर।।


आगम-निगम प्रभुहिं सभ जानैं।


भूत-भविष-आजु पहिचानें।।


    जे अस प्रभु मा चित्त लगावै।


     कबहुँ न पीर नरक कै पावै।।


जे प्रभु मा नहिं ध्यान लगावा।


रौ-रौ नरक अभागा पावा।।


दोहा-राम-नाम-सुमिरन मिलै,सदा हृदय कहँ सांति।


        करत-करत प्रभु-भजन तें, मिटै चित्त कै भ्रांति।।


                    डॉ0हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...