तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-2
चित्रकूट जब बहु दिन बीता।
पुनि प्रभु चले लखन अरु सीता।।
पहुँचे प्रभू अत्रि ऋषि-आश्रम।
रह अति सुखद तत्र ऋतु आलम।।
जब ऋषि प्रभु आवत मग देखा।
पाए दृग-सुख प्रबल बिसेखा।।
आगे बढ़ि प्रभु गरे लगावहिं।
भेंटि प्रभुहिं अतिसय सुख पावहिं।।
राम-लखन-सिय छुइ ऋषि-चरना।
लहहिं असीष जाइ नहिं बरना।।
ऋषि जुहाय देहिं तिन्ह आसन।
परसहिं कंद-मूल-फल कानन।।
दोहा-पाइ समादर अत्रि कै, राम-लखन-सिय साथ।
गदगद चित-मन-तन सहित,नवहिं मुनिहिं निज माथ।।
राम बड़ाई कीन्ह ऋषि,बहु बिधि अरु बहु भाँति।
प्रभु उपकारी जनहिं सभ,जाति-भेद नहिं पाँति।।
राम सहाय होंय वहि जन कै।
जे हिय होय भरोसा उन्हकै।।
जे उर राम-प्रेम नहिं जागा।
अह असंत ऊ अघी-अभागा।।
बड़े भागि तें मिलै सनेहू।
जग मा कृपा राम केहु-केहू।।
प्रभु अखिलेस्वर अरु जगदीस्वर।
प्रभुहिं होंय खलु ईस्वर-ईस्वर।।
आगम-निगम प्रभुहिं सभ जानैं।
भूत-भविष-आजु पहिचानें।।
जे अस प्रभु मा चित्त लगावै।
कबहुँ न पीर नरक कै पावै।।
जे प्रभु मा नहिं ध्यान लगावा।
रौ-रौ नरक अभागा पावा।।
दोहा-राम-नाम-सुमिरन मिलै,सदा हृदय कहँ सांति।
करत-करत प्रभु-भजन तें, मिटै चित्त कै भ्रांति।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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