डॉ0 हरि नाथ मिश्र

किसान


चोर-लुटेरों की चंगुल से,


अब तो मुक्त किसान हुआ।


हो स्वतंत्र अब अन्न बिकेगा-


उसका अब कल्यान हुआ।।


 


अपनी फसल उगा किसान अब,


बिना बिचौलिया साथ लिए।


करेगा विक्रय उपज का अपनी,


बिना दलाली दाम दिए।


मिलेगा उसको उचित मूल्य -


उसका अब सम्मान हुआ।


      अब तो मुक्त किसान हुआ।।


 


उत्तर-दक्षिण,पूरब-पश्चिम,


सभी प्रांतों में जाकर।


उन्मुक्त भाव से बेच सके,


वह उचित दाम अब पाकर।


देकर उसके श्रम की कीमत-


अद्भुत श्रम-गुणगान हुआ।।


       अब तो मुक्त किसान हुआ।।


 


नहीं सियासत शोभित लगती,


इसे बनाकर मुद्दा अब।


तोड़-फोड़-हिंसा अपनाना,


कितना लगता भद्दा अब।


करके हित कृषकों का मित्रों-


भारत देश महान हुआ।।


      अब तो मुक्त किसान हुआ।।


 


दाता अन्न कृषक हैं सबके,


इनका सुख है सबका सुख।


इनको दुख यदि मिला कभी तो,


समझो वह है सबका दुख।


देकर इनको सुख-सुविधा ही-


जन-जन का ही मान हुआ।।


      अब तो मुक्त किसान हुआ।।


         © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


             9919446372


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