डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-16


 


ई रहस्य लछिमन बिनु जाने।


सेवा करहिं प्रभू-सम्माने।।


   तब मरीच रावन सँग गयऊ।


   जेहि बन राम रहहिं सिय सँगऊ।।


भजत मरीच जाइ प्रभु-नामा।


मरि प्रभु-बान चलब सुर-धामा।।


    पहुँचि उहाँ तब रावन कहऊ।


    धरहु मरीच रूप जस चहऊ।।


धरि के कपट-कनक-मृग-रूपा।


इत-उत धावै रुचिर अनूपा।।


   मग लखि अस बिचित्र मृग सीता।


   कौतुक बस कह राम सभीता।।


आनहु प्रभु अस मृग कै चर्मा।


मृगछाला ऋषि-बसन सुधर्मा।।


     लखन सौंपि सीतहिं प्रभु रामा।


      करन चले पुनीत अस कामा।।


कारन समुझि राम तब उठहीं।


बान्हि जटा लइ तरकस-धनुहीं।।


     मग धावत कंचन मृग उत-इत।


    साधन लगे लछ्य लखि हरषित।।


सिव-सनकादि जिनहिं नहिं पावा।


 मृग के पाछे सो प्रभु धावा ।।


      जानि-बूझि मृग दूरि ले जावा।


       बूझहिं राम मरीचि-छलावा।।


लछ्य साधि प्रभु सर संधाना।


'लखन' बोलि मृग त्यागा प्राना।।


     मृत मृग धरि तब रूप मरीचा।


     प्रगटा कर जोरे सिर नीचा।।


दोहा-जग तारन प्रभु राम तब,समुझि दनुज कै प्रेम।


        तारे तेहिं भव-सिंधु तें, बिधिवत स्नेह-सनेम।।


        लखि प्रभु कै करतब विमल,सुर गन भए प्रसन्न।


        सुमन-बृष्टि करने लगे,देखि मरिचि सम्पन्न।।


                     डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                        9919446372


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