तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-16
ई रहस्य लछिमन बिनु जाने।
सेवा करहिं प्रभू-सम्माने।।
तब मरीच रावन सँग गयऊ।
जेहि बन राम रहहिं सिय सँगऊ।।
भजत मरीच जाइ प्रभु-नामा।
मरि प्रभु-बान चलब सुर-धामा।।
पहुँचि उहाँ तब रावन कहऊ।
धरहु मरीच रूप जस चहऊ।।
धरि के कपट-कनक-मृग-रूपा।
इत-उत धावै रुचिर अनूपा।।
मग लखि अस बिचित्र मृग सीता।
कौतुक बस कह राम सभीता।।
आनहु प्रभु अस मृग कै चर्मा।
मृगछाला ऋषि-बसन सुधर्मा।।
लखन सौंपि सीतहिं प्रभु रामा।
करन चले पुनीत अस कामा।।
कारन समुझि राम तब उठहीं।
बान्हि जटा लइ तरकस-धनुहीं।।
मग धावत कंचन मृग उत-इत।
साधन लगे लछ्य लखि हरषित।।
सिव-सनकादि जिनहिं नहिं पावा।
मृग के पाछे सो प्रभु धावा ।।
जानि-बूझि मृग दूरि ले जावा।
बूझहिं राम मरीचि-छलावा।।
लछ्य साधि प्रभु सर संधाना।
'लखन' बोलि मृग त्यागा प्राना।।
मृत मृग धरि तब रूप मरीचा।
प्रगटा कर जोरे सिर नीचा।।
दोहा-जग तारन प्रभु राम तब,समुझि दनुज कै प्रेम।
तारे तेहिं भव-सिंधु तें, बिधिवत स्नेह-सनेम।।
लखि प्रभु कै करतब विमल,सुर गन भए प्रसन्न।
सुमन-बृष्टि करने लगे,देखि मरिचि सम्पन्न।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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