तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-17
सुनि पुकार लछिमन के नामा।
सीता समुझि बिकल प्रभु रामा।।
चिंतित हो लछिमन तें कहहीं।
लछिमन प्रभु जनु संकट परहीं।।
जाहु तुरत तहँ प्रभु की ताईं।
संकट काटि क लाहु गोसाईं।।
बिहँसि लखन सीतहिं पुनि बोले।
जासु भृकुटि भूमंडल डोले ।।
अस प्रभु संकट कबहुँ न आवे।
कस अस कहेउ मातु नहिं भावे।।
कस हम छोड़ीं तोहें माई।
थाती सौंपि गए मोंहि भाई।।
सीता मरम बचन तब कहही।
प्रभु-प्रेरित लछिमन-मन भवही।।
सियहिं सौंपि तब बन-दिसि-देवा।
लछिमन चले राम की सेवा।।
खैंचि भूमि तब लछिमन रेखा।
सीय मातु कहँ पुनः सरेखा।।
अवसर पाइ कुकुर की नाईं।
रावन तहँ सीता की ताईं।।
जती भेष धरि पहुँचा तहवाँ।
सून-अकेल सीय रहँ जहवाँ।।
लगा सुनावै बहु बिधि नाना।
प्रेम-नीति-सुचि कथा-पुराना।।
भिच्छा देहु मोंहि हे सुमुखी।
आरत बचन कहा जनु दूखी।।
सुनि अस बचन सीय तब धाई।
कंद-मूल-फल लइ तहँ आई।।
बँधी भीख मैं कबहुँ न चाहहु।
भीख लेइ तुम्ह बाहर आवहु।।
बिधि-गति समुझि सकीं नहिं सीता।
रेख लाँघि तहँ गईं सभीता ।।
दोहा-जदपि सीय सुर-काजु पटु,कुसल सकल गुन-ग्यान।
बिनु समुझे रावन-कपट, बहि निकसीं अनजान।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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