डॉ0 हरि नाथ मिश्र

छठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-8


 


स्तन-पान कराइ क माता।


पलना माहिं सुताय बिधाता।।


    निरखन लगीं जसोदा मैया।


    प्रमुदित मन जब सिसुहिं कन्हैया।।


बाबा नंद तहाँ तब आए।


गोपिन्ह सँग मथुरा तें धाए।।


    देखि पूतना भीम सरीरा।


    अचरज भे सबहीं गम्भीरा।।


अवसि इहाँ बसुदेवहिं रूपा।


जनम लियो जनु ऋषी अनूपा।।


    अस सभ कहन लगे ब्रजबासी।


     काटत अंग पूतना नासी।


रखि लकड़ी पे अंग-प्रत्यंगा।


दिए जरा सभ अंगहिं-अंगा।।


     धूम्र सुगंधित निकसन लागा।


      पुतना-तन तें जरत सुभागा।।


पिबत दूध तन भयो पुनीता।


पाइ क किसुनहिं मुख-अमरीता।।


     तुरत परम गति पाइ पूतना।


      सत्पुरुषहिं जग मिलई जितना।


प्रभु-पद-पंकज जे मन लागा।


जाके हृदय नाथ अनुरागा।।


     पाई उहहि अवसि सतधामा।


     निसि-दिन भजन करत प्रभु-नामा।।


ब्रह्मा-संकर बंदित चरना।


करहिं सुरच्छा जे उन्ह सरना।।


     प्रभु निज चरनहिं दाबि पूतना।


     पिए दूध तिसु जाइ न बरना।।


दियो परमगति ताहि अनूपा।


मिली सुगति जस मातुहिं रूपा।।


दोहा-कथा पूतना मोच्छई,अद्भुत, परम पुनीत।


         बालकृष्ण लीला इहइ, सुनि जन होंहिं अभीत।।


                         डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


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