डॉ0 हरि नाथ मिश्र

द्वितीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-45


 


केहि बिधि हो सभ काजु सुचारू।


सभ मिलि आपसु करहिं बिचारू।।


     करि सुचारु सभ काजु प्रणाली।


     भरत गए गुरु-धामहिं हाली।।


गुरु-आयसु,मति-बुधि अनुसारा।


नंदिग्राम तब भरतु पधारा।।


    कास-साँधरी,राम-खड़ाऊँ।


    तापसु-भेष भरत तहँ जाऊँ।।


निर्मित करि तहँ परन-कुटीरा।


नेम-बरत जस संत-फकीरा।।


     रहहिं भरत अब नंदीग्रामा।


     राम-पादुका रखि ऊँचि धामा।।


निसि-दिन सुति-उठि साँझ-सकारू।


पूजैं प्रति-दिन पाँव-पाँवरू।।


     लइ आदेस राम-पादुका कै।


     करैं प्रसासन अवधपुरा कै।।


नेम-धरम अरु ब्रत-उपवासा।


दूबर भरत न हो बिसुवासा।।


      घटै बदन-बल,मुख-छबि वैसै।


       बिमल चंद्र-छबि पातर जैसै।।


अवधपुरी अति पुरी सुहावन।


बासन-बसन,असन अरु आसन।


     सभ बिधि लागै अमरपुरी जस।


     धन-कुबेर तरसैं लखि-लखि तस।।


अस सुख-सुविधा तजि रामानुज।


रहहिं गाँव लइ तप-बल निज भुज।।


      दसरथपुरी भरत जनु ऐसे।


       जल बिनु पिए मीन जल जैसे।।


जटा-जूट सिर,तापस-पट मा।


हरषहिं सुरन्ह देखि निज मन मा।।


      धरम-धुरंधर,नीयम-पालक।


      राज-काजु-भारहिं सिर धारक।।


भरत निरंतर करहिं प्रसासन।


राम-नाम धारे अनुसासन।।


     राम-पादुका सतत निहारैं।


     सुमिरि राम कहँ दिवस गुजारैं।।


दोहा-भरत-प्रेम जग-प्रेम कै,सभ जन करहु बिचार।


         भरत-जनम के कारनहिं,जग-त्रुटि होय सुधार।।


                         डॉ0हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


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