द्वितीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-45
केहि बिधि हो सभ काजु सुचारू।
सभ मिलि आपसु करहिं बिचारू।।
करि सुचारु सभ काजु प्रणाली।
भरत गए गुरु-धामहिं हाली।।
गुरु-आयसु,मति-बुधि अनुसारा।
नंदिग्राम तब भरतु पधारा।।
कास-साँधरी,राम-खड़ाऊँ।
तापसु-भेष भरत तहँ जाऊँ।।
निर्मित करि तहँ परन-कुटीरा।
नेम-बरत जस संत-फकीरा।।
रहहिं भरत अब नंदीग्रामा।
राम-पादुका रखि ऊँचि धामा।।
निसि-दिन सुति-उठि साँझ-सकारू।
पूजैं प्रति-दिन पाँव-पाँवरू।।
लइ आदेस राम-पादुका कै।
करैं प्रसासन अवधपुरा कै।।
नेम-धरम अरु ब्रत-उपवासा।
दूबर भरत न हो बिसुवासा।।
घटै बदन-बल,मुख-छबि वैसै।
बिमल चंद्र-छबि पातर जैसै।।
अवधपुरी अति पुरी सुहावन।
बासन-बसन,असन अरु आसन।
सभ बिधि लागै अमरपुरी जस।
धन-कुबेर तरसैं लखि-लखि तस।।
अस सुख-सुविधा तजि रामानुज।
रहहिं गाँव लइ तप-बल निज भुज।।
दसरथपुरी भरत जनु ऐसे।
जल बिनु पिए मीन जल जैसे।।
जटा-जूट सिर,तापस-पट मा।
हरषहिं सुरन्ह देखि निज मन मा।।
धरम-धुरंधर,नीयम-पालक।
राज-काजु-भारहिं सिर धारक।।
भरत निरंतर करहिं प्रसासन।
राम-नाम धारे अनुसासन।।
राम-पादुका सतत निहारैं।
सुमिरि राम कहँ दिवस गुजारैं।।
दोहा-भरत-प्रेम जग-प्रेम कै,सभ जन करहु बिचार।
भरत-जनम के कारनहिं,जग-त्रुटि होय सुधार।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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