तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-12
सीता चितइ स्याम प्रभु-गाता।
होंहिं मुदित प्रभु-प्रेम समाता।।
पंचबटी रहि रघुकुल-नायक।
देहिं सबहिं सुख सिद्धि-बिनायक।।
लखि खर-दूषन सभें बिनासा।
चली सुपुनखा तजि सभ आसा।।
क्रोधित हो रावन पहँ जाई।
ताको गूढ़ बाति बतलाई।।
सुरा-सुंदरी बस तोहिं भावै।
देस-काल कै सुधि नहिं आवै।।
भूलि गयो करि मदिरा-पाना।
का हो धरम-करम नहिं जाना।।
खाइ-सोइ दिन-राति बितावत।
नहिं जानसि का नीति कहावत।।
राज होय बिनु नीति न भाई।
बिनु धन धरम पनपि ना पाई।।
बिनय-बिबेक बिद्या तें आवै।
प्रभुहिं नवहिं श्रम-फल जग पावै।।
बिषय-भोग नहिं जोगी भाए।
कुमति सलाह न राज चलाए।।
मानइ सत्रु ग्यान कै होवै।
मदिरा-पान लाजि जग खोवै।।
बिनु भय नम्र प्रीति नहिं भ्राता।
मद-घमंड तें गुन छिन जाता।।
सिर पे चढ़ि सुनु रिपु इक आवा।
लागत अब ऊ बोली धावा ।।
अस कहि बहु बिलाप करि भगिनी।
फफकहि जस फुफकारै अहिनी।।
दोहा-रोग-अगिनि-स्वामी-सरप,पाप सत्रु-दल आहिं।
जे आकहिं अति लघु इनहिं,डूबहिं दल-दल माहिं।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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