डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-12


 


सीता चितइ स्याम प्रभु-गाता।


होंहिं मुदित प्रभु-प्रेम समाता।।


    पंचबटी रहि रघुकुल-नायक।


   देहिं सबहिं सुख सिद्धि-बिनायक।।


लखि खर-दूषन सभें बिनासा।


चली सुपुनखा तजि सभ आसा।।


   क्रोधित हो रावन पहँ जाई।


   ताको गूढ़ बाति बतलाई।।


सुरा-सुंदरी बस तोहिं भावै।


देस-काल कै सुधि नहिं आवै।।


     भूलि गयो करि मदिरा-पाना।


      का हो धरम-करम नहिं जाना।।


खाइ-सोइ दिन-राति बितावत।


नहिं जानसि का नीति कहावत।।


      राज होय बिनु नीति न भाई।


      बिनु धन धरम पनपि ना पाई।।


बिनय-बिबेक बिद्या तें आवै।


प्रभुहिं नवहिं श्रम-फल जग पावै।।


    बिषय-भोग नहिं जोगी भाए।


    कुमति सलाह न राज चलाए।।


मानइ सत्रु ग्यान कै होवै।


मदिरा-पान लाजि जग खोवै।।


     बिनु भय नम्र प्रीति नहिं भ्राता।


     मद-घमंड तें गुन छिन जाता।।


सिर पे चढ़ि सुनु रिपु इक आवा।


लागत अब ऊ बोली धावा ।।


    अस कहि बहु बिलाप करि भगिनी।


     फफकहि जस फुफकारै अहिनी।।


दोहा-रोग-अगिनि-स्वामी-सरप,पाप सत्रु-दल आहिं।


        जे आकहिं अति लघु इनहिं,डूबहिं दल-दल माहिं।।


                           डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                             9919446372


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