पाँचवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-2
ग्वाल-बाल अरु सभ ब्रजबासी।
पहिरि क भूषन-बसन उलासी।।
निज कर लिए भेंट-उपहारा।
आए सबजन नंद-दुवारा।।
भईं मगन गोपी सभ ब्रज कै।
सुनि के जनम पुत्र जसुमति कै।।
सुरुचि बसन-भूषन ते धारी।
अंजन लोचन डारि सवाँरी।।
कमल-मुखी-सुमुखी सभ नारी।
पंकज केसन कुमकुम धारी।।
भेंट-समग्री लइ-लइ आई।
ललन संग जहँ जसुमति माई।।
सुघर-गठित नितम्भ गोपिन्ह कै।
हिलत पयोधर उनहिं सभें कै।।
धावत रहँ जब मोहहिं लोंगा।
महि पै अस बिरलै संजोगा।।
झिलमिलाय मनि- कुंडल काना।
कंचन-हार-हुमेलहिं नाना ।।
बसन पहिरि बहु रंग-बिरंगी।
पुष्प-गुच्छ चोटिन्ह महँ ढंगी।।
कंगन पहिनि जड़ाऊ दमकैं।
कानन्ह कुंडल झलकैं-चमकैं।।
देहिं असिष बालक नवजाता।
कहि-कहि रच्छा करहु बिधाता।।
करहु प्रभू चिरजीवी यहिं का।
रहहि सुखी-स्वस्थ ई लइका।।
दोहा-मगन होइ सभ गोपिहीं,गावैं मंगल-गान।
हरदी-तेलइ छिड़िकि के,चाहहिं तहँ कल्यान।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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