डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-10


 


दोहा-राम-धनुष-टंकार सुनि,बिकल दनुज-दल होय।


        समुझि सकें नहिं कस लरें, निज सुधि-बुधि सभ खोय।।


      जानि सत्रु तब अति बलवाना।


       छोड़हिं दनुज राम पे बाना।।


अस्त्र-सस्त्र लइ बहु बिधि नाना।


लगे चलावन तीर-कमाना ।।


     राम-बान काटहिं सभ बाना।


     कट-कट-कट जस ककड़ी नाना।।


राम तीक्ष्ण बान संधाने।


देखि सत्रु सभ लगे पराने।।


     क्रुद्ध होइ तिसिरा-खर-दूषन।


     भागा जे केहु मारउँ यहि छन।।


कहे बात जब अस गम्भीरा।


लौटे तब सभ धरि हिय धीरा।।


      भइ क्रोधित प्रभु रिपु रन माहीं।


       बधहीं एक-एक अरि ताहीं ।।


करि चिग्घाड़ भगहिं चहुँ ओरा।


बिनु सिर-मुंड-भुजा घनघोरा।।


     बहु भुज-मुंडहिं उड़हिं अकासा।


     जनु बहु पंख पवन लइ पासा।।


कटकटाहिं लखि काग-श्रृंगाला।


तिन्ह चाहहिं सभ करन निवाला।।


     खप्पर लेइ पिसाचहिं धावैं।


     प्रभु रन मा जब मारि गिरावैं।।


दोहा-काटि-मारि प्रभु समर महँ,कीन्ह पुन्य कै काम।


        जातुधान कटि महि गिरैं,बिनु भुज-मुंड धड़ाम।


        उड़हिं गीध लइ आँतड़ी,भुज लइ भूत-पिसाच।


         राम-बान काटहिं सभें,लग न साँच को आँच।।


         त्रिसिरा-खर-दूषन सभें,लखि निज दल दयनीय।


         करहिं वार सभ साथ मिलि,जानि न रिपु कमनीय।।


                    डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


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