तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-10
दोहा-राम-धनुष-टंकार सुनि,बिकल दनुज-दल होय।
समुझि सकें नहिं कस लरें, निज सुधि-बुधि सभ खोय।।
जानि सत्रु तब अति बलवाना।
छोड़हिं दनुज राम पे बाना।।
अस्त्र-सस्त्र लइ बहु बिधि नाना।
लगे चलावन तीर-कमाना ।।
राम-बान काटहिं सभ बाना।
कट-कट-कट जस ककड़ी नाना।।
राम तीक्ष्ण बान संधाने।
देखि सत्रु सभ लगे पराने।।
क्रुद्ध होइ तिसिरा-खर-दूषन।
भागा जे केहु मारउँ यहि छन।।
कहे बात जब अस गम्भीरा।
लौटे तब सभ धरि हिय धीरा।।
भइ क्रोधित प्रभु रिपु रन माहीं।
बधहीं एक-एक अरि ताहीं ।।
करि चिग्घाड़ भगहिं चहुँ ओरा।
बिनु सिर-मुंड-भुजा घनघोरा।।
बहु भुज-मुंडहिं उड़हिं अकासा।
जनु बहु पंख पवन लइ पासा।।
कटकटाहिं लखि काग-श्रृंगाला।
तिन्ह चाहहिं सभ करन निवाला।।
खप्पर लेइ पिसाचहिं धावैं।
प्रभु रन मा जब मारि गिरावैं।।
दोहा-काटि-मारि प्रभु समर महँ,कीन्ह पुन्य कै काम।
जातुधान कटि महि गिरैं,बिनु भुज-मुंड धड़ाम।
उड़हिं गीध लइ आँतड़ी,भुज लइ भूत-पिसाच।
राम-बान काटहिं सभें,लग न साँच को आँच।।
त्रिसिरा-खर-दूषन सभें,लखि निज दल दयनीय।
करहिं वार सभ साथ मिलि,जानि न रिपु कमनीय।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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