डॉ0 निर्मला शर्मा

प्रातः वन्दना


हाथ जोड़ विनती करूँ,


धरूँ तिहारा ध्यान।


अब मोरी विनती सुनो,


परमब्रह्म परमात्म।


भ्रामक है जग मिथ्या ये,


नाशवान संसार।


मेरी जीवन नौका को,


अब पार लगाओ नाथ।


मन भँवरा सा उड़त फिरै,


मिलै न तेरा द्वार।


कैसे मोक्ष मिलेगा भगवन,


करो मेरा उद्धार।


माया मोह में डूबकर,


मनुज हुआ निस्सार।


किस विधि माया से बचै,


कोई ऐसा करो उपाय।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...