डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश

शिक्षक की कृपा है अपार,


नमन उन्हें बार-बार है। 


उन्हें शीश झुँकाए संसार 


नमन उन्हें...............


 


पहली शिक्षक माँ हैं मेरी 


मेरा दूजा गुरु परिवार।


नमन उन्हें...............


 


अन्तर्तम को दूर करें वो,


वो भरते हैं ज्ञान भण्डार।


नमन उन्हें................


 


शिक्षक मन-पावन करते हैं, 


करते भय-संशय संहार।


नमन उन्हें.................


 


शिक्षक ही तो योगगुरु हैं,


करें तन-मन में झंकार। 


नमन उन्हें................. 


 


आत्मा से परमात्म मिलाए,


वो करें भव सागर उस पार।


नमन उन्हें....................


 


गुरु पद पंकज शीश झुँकाऊँ, 


उनकी वाणी में अमृत धार।


नमन उन्हें.................. 


 


मैं तो गीली मिट्टी जैसा था,


मुझको दिये हैं वो आकार। 


नमन उन्हें................... 


 


गढ़ि-गढ़ि शिक्षक खोट निकाले, 


गढ़ता है कुम्भ ज्यों कुम्हार।


नमन उन्हें.....................


 


शिक्षक सिंचित करे बालमन, 


वो देते जीवन को आधार।


नमन उन्हें...................... 


 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश


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