डॉ0 रामबली मिश्र

इस प्यासे को आज जिला दो।


थोड़ा अमृत बूँद पिला दो।।


 


नहीं याचना सुनता कोई।


भूखे को अन्न खिला दो।।


 


अंधकार से आच्छादित इस।


इस निरीह को लोक दिला दो।।


 


विछड़ गया है यह अपनों से।


आत्मजनों से इसे मिला दो।।


 


व्यर्थ समझता अपना जीवन।


भाव-अर्थ इसको सिखला दो।।


 


पापों से बोझिल इस मन को।


पुण्यपुंज का पथ दिखला दो।।


 


जन्म-जन्म से विचलित मन को।


सत्कर्मों की घूँट पिला दो।।


 


भ्रमित मनुज इस घोर अपावन।


को अपना जलवा दिखला दो।।


 


घावों में कंपन है इसके।


उनको थोड़ा सा सहला दो।।


 


थके हुये इस मानव-जन को 


प्रेम गंग में कुछ नहला दो।।


 


व्यथित हृदय की करुण वेदना।


को अमृत की बूँद पिला दो।।


:


डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


 


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