डॉ0 रामबली मिश्र

कान्हा की वंशी की ध्वनि सुन।


सारी सखियों का हर्षित मन।।


 


कान्हा से मिलने को व्याकुल।


तोड़ रहीं अपना सारा तन।।


 


बढ़ती जाती बेचैनी है।


चाह रहीं वंशीमय हो मन।।


 


युग-युग से हैं भूखी-प्यासी।


चाह रही हैं कान्हा का तन।।


 


वंशी की आवाज सुरीली।


पर न्योछावर सब तन मन धन।।


 


नहीं रोक पाती हैं सखियाँ ।


पर मजबूरी में उनका मन।।


 


हाय कृष्ण ,हे मुरलीवाले।


आओ अब तुम मेरे उपवन।।


 


या वंशी की तान न छेड़ौ।


या आओ अब मेरे जीवन।।


 


विरहिन तुम मत हमें बनाओ।


आस बने तुम करो सुहागन।।


 


मत निराश कर प्यारे कान्हा।


लेकर चल हम सबको मधुवन।।


 


या यमुना के तट पर चलकर।


चूमेगे हम प्रिय श्याम वदन।।


 


मत ललचाओ हे प्रियतम तुम।


बरसो बनकर प्रेम श्याम -घन ।।


 


रचनाकार:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...