कान्हा की वंशी की ध्वनि सुन।
सारी सखियों का हर्षित मन।।
कान्हा से मिलने को व्याकुल।
तोड़ रहीं अपना सारा तन।।
बढ़ती जाती बेचैनी है।
चाह रहीं वंशीमय हो मन।।
युग-युग से हैं भूखी-प्यासी।
चाह रही हैं कान्हा का तन।।
वंशी की आवाज सुरीली।
पर न्योछावर सब तन मन धन।।
नहीं रोक पाती हैं सखियाँ ।
पर मजबूरी में उनका मन।।
हाय कृष्ण ,हे मुरलीवाले।
आओ अब तुम मेरे उपवन।।
या वंशी की तान न छेड़ौ।
या आओ अब मेरे जीवन।।
विरहिन तुम मत हमें बनाओ।
आस बने तुम करो सुहागन।।
मत निराश कर प्यारे कान्हा।
लेकर चल हम सबको मधुवन।।
या यमुना के तट पर चलकर।
चूमेगे हम प्रिय श्याम वदन।।
मत ललचाओ हे प्रियतम तुम।
बरसो बनकर प्रेम श्याम -घन ।।
रचनाकार:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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