डॉ0 रामबली मिश्र

रावण


अहंकार को रावण जानो।


इसका वध करने को ठानो।।


 


सबके मन में छिपा हुआ है।


प्रभुता पा कर तपा हुआ है।।


 


चाल-ढाल सब दनुज समाना।


करता रहता सब मनमाना।।


 


पूजनीय बनने की चाहत।


में मिलती है मन को राहत।।


 


ब्रह्मजनित अतिशय बलवाना।


खुद को कहता है भगवाना।।


 


अहंकारवश शीश कटाया।


सीता हरकर लंक गँवाया।।


 


अहंकार में सर्वनाश है।


यहाँ नहीं होता विकास है।।


 


यदि चाहत अपना कल्याणा।


अहंकार तज भज भगवाना।।


 


अहंकार अति दु:खद अपावन।


इसे समझना मत मनभावन।।


 


यही नष्ट करता जीवन को।


यह उजाड़ता खिले चमन को।।


 


पाप क्षेत्र इसको ही जानो।


इस पर सदा खड्ग को तानो।।


 


नीच अनैतिक को पहचानो।


इसको अपना दुश्मन जानो।।


 


इसको समझो गंदा नाला।


यह पीता है सड़ियल प्याला।।


 


इससे जो नफरत करता है।


वही राम संग रहता है।।


 


जो इसकी सेवा करता है।


वही पतित दानव बनता है।।


 


सदा राम की सेवा करना।


रामामृत रस पीते रहना।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


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