डॉ0 रामबली मिश्र

तपस्या


 


घोर परिश्रम से मत डरना।


सतत तपस्या करते रहना।।


 


सदा कर्म को पूजा समझो।


कर्मनिष्ठ बन चलते रहना।।


 


सुंदर कर्मों का फल मीठा।


पर निष्कामी बनकर रहना।।


 


फल की इच्छा त्याग रे वंदे।


त्याग भाव में जीते रहना।।


 


समझ त्याग को नित्य तपस्या।


आजीवन तप करते रहना।।


 


नियमित करो परिश्रम प्रियवर।


श्रम को गले लगाते रहना।।


 


तन को मन को सदा तपाओ।


हर्षित होकर तपते रहना।।


 


तन -मन का प्रयोग अधिकाधिक।


स्व में दिव्य विचरते रहना। ।


 


करो तपस्या सदा अकेला।


अन्तेवासी बनकर रहना।।


 


उठते रहना व्योम क्षितिज तक।


आत्मतोष तक बढ़ते रहना।।


 


आत्मतोष ही तप का फल है।


आत्मकेन्द्र पर चलते रहना।।


 


अपने में ही खो कर देखो।


परम भाव में स्थिर रहना।।


 


डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


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