डॉ0 रामबली मिश्र

मान न मान, मैं तेरा मेहमान


 


चाहे मानो या मत मान,पर मुझको मेहमान समझना।


आया हूँ मेहमानी आज , बहुत दिनों से सोच रहा था।


कल,कल,में बीते दो माह,आज मिला है मौका मुझको ।


बहुत दिनों से तुझ पर ध्यान,लगा हुआ था किन्तु विवश था।


घर में बहुत अधिक था काम,एक मिनट की नहिं थी फुरसत।


लगी थी चिन्ता मुझे विशेष,मौका आज मिला है प्यारे।


तुझसे मिलकर खुश हूँ आज,इच्छा पूरी हुई आज है।


भले करो तुम मत सत्कार,किन्तु बताओ हाल-चाल कुछ।


चाहे पानी को मत पूछ,किन्तु गर्मजोशी दिखलाओ।


भले बैठने को मत बोल,सुखा-दु:खा कुछ हो जाने दो।


मुझको मानो या मत मान,पर मेहमान तुम्हारा मैं हूँ।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


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