अंतस्थल में है पड़ी, नैसर्गिक संपत्ति।
जिसके सफल प्रयोग से, जाती भाग विपत्ति।।
एक-एक से रत्न का, देखो सदा कमाल।
आत्म निवेदन प्रेम से ,जाती दूर विपत्ति।।
श्रद्धा अरु विश्वास से, खुश होते हैं ईश।
अंत:पुर की है यही, आध्यात्मिक संपत्ति।।
सच्चाई-ईमान का, करते रहना ख्याल।
इनके आगे टिक नहीं, सकती कभी विपत्ति।।
धर्म और सत्कर्म ही, सुंदर मन की सोच।
इन्हीं सुरक्षा कवच को, समझ मूल संपत्ति।।
मानव मूल्यों का करो, सत शिव शुभ उपयोग।
मानव मूल्य महान ही, जीवन की संपत्ति।।
नैतिकता इंसानियत ,ही जीवन के स्रोत।
मानव देव स्वरूप है, पा कर यह संपत्ति।।
मनसा वाचा कर्मणा, करते रह सहयोग।
सबसे उत्तम संपदा, है सहयोग-प्रवृत्ति।।
सुंदर-उत्तम सोच रख, गन्दे से रह दूर।
सुंदर भावों पर भला, कौन करे आपत्ति।।
दूषित चिंतन मत करो, यह विपत्ति का गेह।
पावन चिंतन -खनन में, है अद्भुत संपत्ति।।
डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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