डॉ0 रामबली मिश्र

जाना-पीना-जीना सीखो


 


जाने का अभ्यास करो अब।


पा जाओगे मधुशाला तब।।


 


गये बिना कैसे पहुँचोगे ?


मधुशाला कैसे देखोगे??


 


जा कर ही तुम पी सकते हो।


पी करके ही जी सकते हों।।


 


समझो जाना बहुत जरूरी।


बिना गये कामना अधूरी।।


 


ईश्वर से कर यही याचना।


पूरी कर दें वही कामना।।


 


मय बिन जीवन सदा निरर्थक।


मय-मधु-हाला से ही सार्थक।।


 


पागल बनना बहुत जरूरी।


मय ही तोड़ेगा मगरूरी।।


 


अहंकार से मुक्ति मिलेगी।


जब उर में मयधार गिरेगी।।


 


मय पी कर चहुँओर चलूँगा।


दौड़ लगाता सदा फिरूँगा।।


 


देखूँगा मैं सकल लोक को।


सकल लोक में ब्रह्मलोक को।।


 


ब्रह्मलोक में बस परमेश्वर।


परमेश्वरमय श्री रामेश्वर।।


 


शिव में राम राम में शंकर।


देखूँगा रामेश्वर सुंदर।।


 


सुंदर में आत्म का ज्ञाना।


सहज ज्ञानमय सत-शिव ध्याना।।


 


एकनिष्ठ हो ध्यानमग्न हो।


हो विदेह तब सहज नग्न हो।।


 


मत पूछो मेरी हालत को।


देखो केवल मय के लत को।।


 


कितनी सुंदर यह लत न्यारी।


सारी जगती अतिशय प्यारी।।


 


धर्म-नशा जब छा जायेगा।


जीवन सार्थक हो जायेगा।।


 


मय-मदिरा-मधु-हाला पीना।


आध्यात्मिक भावों में जीना।।


 


मैं ही साकी, पीनेवाला।


तुम भी पी बन जा मतवाला।।


 


मधुशाला को छोड़ न जाना।


मधुशाला से ही सब पाना।।


 


कर प्रचार नित मधुशाला का।


मतवाला पीनेवाला का।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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