सांस रुकने लगी, आंख दुखने लगी,
याद आई तेरी, गीत गाने लगे।
एक चेहरा वही फिर उभरने लगा,
भूलने में जिसे हैं, जमाने लगे।।
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मेरे पलकों पे आंसू की अर्थी सजी,
मुस्कराओ तो फिर ये जनाजा उठे।
फिर जले यूं चिता, मेरे अरमानों की,
दिल में उम्मीद का, फिर धुआं सा उठे।।
मैने मन्दिर बनाया उसी मोड़ पर,
जिस रस्ते से तुम आने जाने लगे।
एक चेहरा वही फिर उभरने लगा,
भूलने में जिसे हैं जमाने लगे।।
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मन के मन्दिर में मूरत तेरी बस गयी,
बंद आंखे करूं ध्यान तेरा ही हो।
जब करूं प्रार्थना,तू ही आए नजर,
आरती जो करूं, नाम तेरा ही हो।।
मेरी सारी तपस्या विफल हो गई,
कॉलेज छोड़कर जब वो जाने लगे।
एक चेहरा वही फिर उभरने लगा,
भूलने में जिसे हैं जमाने लगे।।
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तेरे दीदार को मैं तरसता रहा,
रात दिन आंसुओं में ये आंखे जलीं।
तू नहीं जानती, कितना भटका हूं मैं,
तुझसे होके जुदा, मौत भी न मिली।।
ओढ़ कर तेरी चूनर को, सो जाएं जब,
स्वप्न में ही महल हम बनाने लगे।
एक चेहरा वही फिर उभरने लगा,
भूलने में जिसे हैं जमाने लगे।।
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तेरी हर खामियां, खूबियां बन गईं,
तुम जो रूठी, तो फिर से मना लूंगा मैं।
गर तेरा साथ हो, बीती हर बात हो,
रेत के फिर घरौंदे बना लूंगा मैं।।
अपने घर बार के, रास्ते भूलकर,
तेरी चौखट पे सर को झुकाने लगे।
एक चेहरा वही फिर उभरने लगा,
भूलने में जिसे हैं जमाने लगे।।
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दुर्गा प्रसाद नाग
नकहा- खीरी
(उत्तर प्रदेश)
मोo- 9839967711
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