दुर्गा प्रसाद नाग

वो किताब अब भी जिंदा है...


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जिस पर तेरा नाम लिखा है,


रंग बिरंगे फूलों जैसा।


 


जिस पर मेरा दर्द लिखा है,


रेगिस्तान के शूलों जैसा।।


 


कितनी मिन्नत की थी मैने,


तब तुमने वो नाम लिखा था।


 


अपने आंसू की स्याही से,


सुबह-ओ-शाम लिखा था।।


 


मेरे जीवन की सांसों का,


एक वही स्वर- सजिंदा है।


 


वो किताब अब भी जिंदा है...


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जिसमें इक "तस्वीर" है तेरी,


जिससे हंसकर बात करूं मैं।


 


जिसमें इक तकदीर है मेरी,


जन्नत दिन और रात करूं मैं।।


 


कितनी कोशिश की थी मैने,


तब तुमने तस्वीर वो दी थी।


 


उससे वक्त कटेगा मेरा........,


समझो बस "शमशीर" वो दी थी।।


 


सारे पन्नों के समाज में,


जैसे वो भी बासिंदा है।


 


वो किताब अब भी जिंदा है...


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जिसमें एक गुलाब रखा है,


मरा हुआ है, सूख चुका है।


 


अपनी अंतिम सांसे देकर,


स्वाभिमान को फूंक चुका है।।


 


कितनी चाहत की थी मैने,


तब तुमने वो फूल दिया था।


 


सूनी आंखों में चुभता है,


ऐसा तुमने शूल दिया था।।


 


खुशबू उसकी अभी अमर है,


लेकिन फूल नहीं जिंदा है।


 


वो किताब अब भी जिंदा है...


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जिसके सीने पर रखा वो,


लाल- कलम अब भी रोता है।


 


जैसे इक मां के आंचल से,


"लाल" लिपटकर के सोता है।।


 


कितनी इज्जत की थी मैने,


तब तुमने वो कलम दिया था।


 


लिखने को ये गीत अधूरा,


तुमने साज-ए-अलम दिया था।।


 


तुम्हीं बताओ कैसे लिख दूं ,


तेरा प्यार कहीं जिंदा है।


 


वो किताब अब भी जिंदा है...


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कितनी बार कहा था तुमसे,


मुझको प्रिया गीत वो लिख दो।


 


मेरा मन बहलाने को ही,


मुझको पागल मीत ही लिख दो।।


 


कितनी हिम्मत की थी हमने,


तब तुमने वो गीत लिखा था,


 


याद रहे मुझको जीवन भर,


ऐसा स्वर- संगीत लिखा था।।


 


आज जुदा हो जाने पर भी


"दुर्गा" तुमसे शर्मिन्दा है।


 


वो किताब अब भी जिंदा है...


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दुर्गा प्रसाद नाग


नकहा- खीरी


मोo- 9839967711


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