आज की मणिकर्णिका।
तुझमें सबको रानी लक्ष्मी बाई
का अक्स दिखता है।
वही अंदाज़, तेवर और अलग
ही रश्क दिखता है।।
शीशे से पत्थर को तोड़ने का
हौंसला कहाँ से पाया।
आग से खेलने का वैसा ही
नाजो नक्श दिखता है।।
तूने सारे के सारे भरम ही
तोड़ कर रख दिये हैं।
नारी नहींअबला कि सब रुख
मोड़ कर रख दिये हैं।।
खूब लड़ी मर्दानी की ललकार
तेरी धार में है लगती।
सारे समीकरण ही उल्टे तूने
जोड़ कर रख दिये हैं।।
हाथ जल जायेगा मशाल से
तुझको डर नहीं लगता।
तू जा नहीं पाये कहीं कोई भी
ऐसा सफर नहीं लगता।।
हौंसला ऐसा कि जिसकी और
कोई सानी मिसाल नहीं।
तुझे गिरा पाये अब ऐसा कोई
शजर नहीं लगता।।
वीरांगना रणचंडी दुर्गा स्वरूपा
तेरा अंदाज़ लगता है।
तेरा तौर तरीका सबसे अलग
कुछ खास लगता है।।
कहाँ जाकर रुकेगी तेरी छलांग
पता नहीं है किसीको।
तेरी हिम्मत का हर छोर दूर
खूब बेहिसाब लगता है।।
एस के कपूर श्री हंस
बरेली।
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