बन सकते हो तो किसी के
हुमदोस्त हमराज बनो।
बन कर हमसाया दिल की
तुम इक आवाज़ बनो।।
सहयोग संगठन संग साथ की
भाषा है सर्वोत्तम।
जुड़ कर जमीन से भी तुम
हवा से परवाज़ बनो।।
मैं तुम हम सब जान लो कि
एक दूजे से ही पूरे हैं।
उधार की जिन्दगानी में सब
के बिना अधूरे हैं।।
एक और एक मिल कर हम
बन जाते हैं ग्यारह।
जिन्दगी की परिभाषा साथ
मिलकर ही भरेपूरे हैं।।
मिल कर सबकी बंद मुठ्ठी
मानो लाख की है।
खुल गई तो फिर वही बन
जाती खाक की है।।
मिलकर चलने का रास्ता ही
है जीत का मन्त्र।
इसीमें छिपी सच्चाई पूरे करने
को हर ख्वाब की है।।
एस के कपूर श्री हंस
बरेली
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