एक ही कलम
दया,वीर,और अहंकार भी है।
कलम मेरी दुआ भी और
तलवार भी है।
गरीबों के लिए तो सदा ही
खिदमतगार भी है।।
एक ही कलम कभी शोला
तो शबनम है यह।
वंचितों के लिए बन जाती
पैगामे हकदार भी है।।
दिल को भी छूती कलम और
दूर की खबर भी है।
कभी तकरार तो कभी भर
जाता सबर भी है।।
इसकी हर बात का असर होता
है बहुत दूर तक।
कभी नरम तो कभी घबराता
इससे जबर भी है।।
कलम पूजन है, प्यार है और
हथियार भी है।
शब्द शिल्पी और समाज राष्ट्र
के प्रति सरोकार भी है।।
कलमऔर जुबान में अंतर नहीं
प्रयोग करें संभाल कर।
यही एक ही कलम मिश्री, वीर,
दया और अहंकार है।।
एस के कपूर श्री हंस
बरेली।
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