एस के कपूर श्री हंस

चार बजे गये पार्टी की सौगात, 


अभी बाकी है।


गुमनामी केअंधेरों की रात अभी, 


बाकी है।।


दल दल है, धुंआ है, धुंध है,  


है छाया गुबार।             


गिरते पतन की तो हर बात, 


अभी बाकी है।।


 


मौज मस्ती शराब ड्रग का चढ़ना, 


अभी खुमार है।


अभी से हो रहा जाने जिया,


 


 कैसा बेकरार है।।


अभी डूब कर जाना वह दरिया, 


तो है बाकी।


अभी तो यह नशा उतरने को, 


बेशुमार है।।


 


अभी तो हमें अपना जीवन मिट्टी, 


में मिलाना है।


माँ बाप के उन सपनों की अभी,


राख बनाना है।।


अभी तो हमें सीखना वो सब जो,


पढ़ाया नहीं जाता।


बहुत से नये नये गुल अभी हमें,


खिलाना हैं।।


 


रोक लो थाम लो अभी इस गर्त में,


गिरते अच्छों को।


संस्कार संस्कृति का पाठ पढ़ाओ,


जरा इन कच्चोँ को।।


कच्ची उम्र और मिट्टी का घड़ा है,


संभाल लो अभी।


लग गई है जो गलत लत वह जरा,


छुड़ाओ इन बच्चों को।।


 


बचाओ इनको अभी से कि यह,


देश का भविष्य हैं।


बताओ कैसे होते विद्यार्थी , आदर्श, 


गुरु शिष्य हैं।।


समझाओ क्या होते हैं मायने आदर,


 


और आशीर्वाद के।


कैसे होते समर्पणऔर देश भक्ति के,


सच्चे दृश्य हैं।।


 


भारत का पुरातन इतिहासऔर शौर्य,


उनको पढ़ना है।


राष्ट की भावी धरोहर के रूप में उन,


को गढ़ना है।।


भविष्य के बोस, गांधी,टैगोर,कलाम,


बनना है उनको।


विश्व गुरु भारत महान की पताका,


लेकर ऊपर चढ़ना है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


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