हँसी ठहाके जैसे खुशी के
तराने आज गुम हैं।
आने जाने मिलने मिलाने के
बहाने आज गुम हैं।।
दूर दूर से मिलना अभी तो
पास भी आना नहीं।
हमारे अपनों को तो छोड़िये
अनजाने आज गुम हैं।।
उदासी आज चेहरों पर कि
सड़कें भी सुनसान हैं।
घूमने फिरने के जैसे लगता
दब गए अरमान हैं।।
शादी ब्याह खाने पीने की बात
लगती आज पुरानी जैसे।
मास्क लगा कर ही घूम रहे
आज सारे इंसान हैं।।
पर याद रहे कॅरोना से जंग जारी
कॅरोना को हराना है।
वैक्सीन बनानी और फिर टीका
सबको ही लगाना है।।
हर महफ़िल को रोशन करना है
वैसे ही गुलज़ार हमें।
हर त्यौहार पर उत्साह से फिर
दीपक हमें जलाना है।।
बस जरूरत है अभी कुछ धैर्य
और जिम्मेदारी की।
लापरवाही नहीं बस सावधानी
से हर सवारी की।।
अभी दूर से नमस्कार और जरूरी
है अभी सामाजिक दूरी।
पर जान लो मिल कर करनी अर्थी
विसर्जित इस महामारी की।।
एस के कपूर श्री हंस
बरेली।
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