शीर्षक - अहम अहंकार
मुक्तक. 1.
सच से दूर. हर बात में
नई सजावट आ गई है।
रिश्तों में कुछ. नकली सी
अब बनावट आ गई है।।
मन भेद मति भेद आज
बस गये हैं भीतर तक।
कैसे करें यकीं कि यकीन
में भी मिलावट आ गई है।।
*गरूर अभिमान मिटा देता है*
*तेरे निशां।*
*मुक्तक. 2. ।*
तुम्हारा चेहरा बनता कभी तेरी
पहचान नहीं है।
अभिमान से मिलता किसी को
कभी सम्मान नहीं है।।
लोग याद रखते हैं तुम्हारे दिल
व्यवहार को ही बस।
न जाने कितने सिकंदर दफन
कि नामो निशान नहीं है।।
*न जाने कौन सी राह चल रहे।*
*मुक्तक. 3. ।*
जाने हम कहाँ से कहाँ
अब आ गये हैं।
ईर्ष्या की दौलत को हम
आज पा गये हैं।।
सोने. के निवालों से अब
अरमान हो गए।
आधुनिकता में भावनायों
को ही खा गए हैं।।
एस के कपूर श्री हंस
बरेली।
मो 9897071046
8218685464
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