एस के कपूर श्री हंस

सींचते रहो सदा रिश्तों के पेड पौधों को।।


 


कोई खामोश है तो तुम


आवाज़ देकर बुला लो।


कुछ उसकी सुनो और


कुछ अपनी सुना लो।।


टूट रही है डोर बस जरा


थाम लो पकड़ कर।


रिश्तों में दर्द समझो


आँसू उनके चुरा लो।।


 


रिश्ता निभनेऔर निभाने


का ही नाम होता है।


हर कोई कुछ पाता और


कभी कुछ खोता है।।


एक तरफ़ा का चलन


नहीं होता है रिश्तों में।


वैसी ही फसल काटता


जैसी वह बोता है।।


 


तेरा आज का किया ही


तेरे कल काम आयेगा।


आज का आगाज़ ही


अंजाम को बतायेगा।।


रिश्तों में भी लागू जैसी


करनी वैसी ही भरनी।


जैसा करेगा सम्मान वैसा


ही परिणाम तू पायेगा।।


 


घमंड बहुत खतरनाक कि


रिश्ते इसकी खुराक हैं।


पल में टूट जाते संबंध कि


सब रह जाते आवाक हैं।।


मत काटना कभी रिश्तों


की मजबूत जडों को।


कि हरे भरे भी सूख 


जाते पेड़ पत्ते शाख हैं।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।।


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