(1)क्रोध और अहंकार
क्रोध अंधा है
अहम का धंधा है
बचो गंदा है
अहम क्रोध
कई हैं रिश्तेदार
न आत्मबोध
लम्हों की खता
मत क्रोध करना
सदियों सजा
ये भाई चारा
ये क्रोध है हत्यारा
प्रेम दुत्कारा
ये क्रोधी व्यक्ति
स्वास्थ्य सदा खराब
न बने हस्ती
क्रोध का धब्बा
बचके रहना है
ए मेरे अब्बा
ये अहंकार
जाते हैं यश धन
ओ एतबार
जब शराब
लत लगती यह
काम खराब
(2)रिश्ते और दोस्ती
नज़र फेर
वक्त वक्त की बात
ये रिश्ते ढेर
दिल हो साफ
रिश्ते टिकते तभी
गलती माफ
दोस्त का घर
कभी दूर नहीं ये
मिलन कर
मदद करें
जबानी जमा खर्च
ये रिश्ते हरें
मिलते रहें
रिश्तों बात जरूरी
निभते रहें
मित्र से आस
दोस्ती का खाद पानी
यह विश्वास
मन ईमान
गर साफ है तेरा
रिश्ते तमाम
मेरा तुम्हारा
रिश्ता चलेगा तभी
बने सहारा
दूर या पास
फर्क नहीं रिश्तों में
बात ये खास
*(3)नकारात्मक व्यक्तित्व*
जरा तिनका
आलपिन सा चुभे
मन इनका
कोई बात हो
टोका टाकी मुख्य है
दिन रात हो
कोई न आँच
खुद पाक साफ हैं
दूजे को जाँच
खुद बचाव
बहुत खूब करें
यह दबाव
दोषारोपण
दक्ष इस काम में
होते निपुण
तर्क वितर्क
काटते उसको हैं
तर्क कुतर्क
कोई न भला
गलती ढूंढते हैं
शिकवा गिला
बुद्धि विवेक
और सब अपूर्ण
यही हैं नेक
जल्द आहत
तुरंत आग लगे
लो फजीहत
एस के कपूर श्री हंस
बरेली।
मो 9897071046
8218685464
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें