ज्योति तिवारी

बिटिया‌ का ससुराल से घर ‌आना


यूं खिलखिलाना


ऐसा लगे जैसे चिड़िया चहचहाना


वो खाली सा आंगन


लगे आज पूरा


वो गुड़िया का घर भी जो


कल तक था अधूरा


वो उम्मीद मेरी वो अहसास है


वो जन्मों ‌जनम‌ की बुझी


प्यास है


उसके आने से घर घर सा लगे


नहीं तो अधूरा सा लगे


वो पायल की छम-छम


वो चूड़ी की खनखन


वो है परिवार की अविरल


सी धड़कन


एक मां को सबकुछ मिल गया देख उसका‌ मुस्कुराना


वो पापा से मिलकर


उसको लिपटाना


वो भाई की कलाई में राखी का बंधना


उसी से तो घर में त्योहार है


वहीं मेंरी खुशियों का


असली ठिकाना


मुझे यह पता है


कल चली जाएगी वो


फिर अगले सावन मे


आप पाएंगी वो


इसलिए जी भर के मनुहारना


सभी ‌कुछ उसी‌पर है वारना



ज्योति तिवारी


बैंगलोर


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