कालिका प्रसाद सेमवाल

ये जिन्दगी


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क्या बताऊँ कैसी है ये जिन्दगी


कभी तो फूल सी लगती है


और कभी दुखों का घर लगती है


ये जिन्दगी।


 


कभी तो काँटों में गुलाब सी


मुस्कुराती है ये जिन्दगी


कभी दूर डूबते सूरज सी


लगती है ये जिन्दगी।


 


कभी सूरज की पहली किरण


सी लगती है यह जिन्दगी


कभी कल्पनाओं के सागर में


गोते लगाती है ये जिन्दगी।


 


कभी दूसरे का दर्द को देख कर


रो पड़ती है ये जिन्दगी


कभी मौत के भय से


बदहवास सी दौड़ती है ‌ये जिन्दगी।


 


कभी अवसादो के क्षणों में


बहुत विचलित होती है


और कभी खुश हो जाती है


ये जिंदगी।


 


आज जीवन कितना ऊबाऊ है


यहां सब कुछ बिकाऊ है


कभी बहुत सूना पन लगता है


 कभी मजेदार लगती ये जिन्दगी। 


 


कभी मंजिल के बहुत करीब


लगती है ये जिन्दगी


कभी एक -एक पग 


पीछे धकेलती है ये जिन्दगी।


 


कैक्टस के पौधो को


घरों मे लगाते जा रहे हो


फूलो सी सुन्दर जिन्दगी को


क्यों काटों से सजा रहे हो।


 


क्या कहूँ कैसी है ये जिन्दगी


जैसे भी है


बहुत सुहावनी है ये जिन्दगी


ईश्वर का कृपा प्रसाद है ये जिन्दगी।।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड 246171


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