कालिका प्रसाद सेमवाल

मानव दानव बना हुआ है


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निर्जन पथ की मन्द पवन में


मुझको यह अहसास हुआ,


ऐसा लगा कि मुझे देख कर


एक फूल थोड़ा सा मुस्काया।


 


हँस कर वह फूल मुझसे बोला


क्या तुम सोच रहे हो भाई,


यह संसार नितान्त विकट है


यहां तो रहते है अन्यायी।


 


तृष्णा , लालच , राग-द्वेष का


यहाँ पड़ा रहता है नित डेरा,


दिन के उजाले में भी रहता है


अंधकार का घोर बसेरा।


 


भौतिक सुख की अभिलाषा में


होते रहते बड़े बड़े अत्याचार यहाँ,


दया धर्म है जिन लोगो में


बहुत कम लोग है ऐसे सज्जन।


 


आज मानव तो दानव बना हुआ है


पर तुम तो परोपकारी ही बनना,


मानवता के .लिए मात्र 


तुम मानव बनकर जीना मरना।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


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