काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार संगीता श्रीवास्तव सुमन  छिंदवाड़ा मप्र

नाम - संगीता श्रीवास्तव 'सुमन'


कवयित्री / शायरा  


स्थाई पता - इलाहाबाद उप्र 


 


शिक्षा - पत्रकारिता एवं लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर 


विधा - गीत ,ग़ज़ल , मुक्तक आदि


प्रकाशित - एकमात्र काव्य संग्रह 'झरते पलाश'


दो साझा संकलन 


पत्र पत्रिकाओं में गीत ग़ज़लों का नियमित प्रकाशन


आकाशवाणी से काव्य पाठ


सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन कार्य से सम्बद्ध 


आकाशवाणी एवं दूरदर्शन हेतु स्वतंत्र लेखन एवं वाचन


 


 


गीतिका /ग़ज़ल ......


 


नदी हूँ मैं रवांँ रहना मेरी फितरत समझ लेना ,


किया कितना सफ़र मेैंने कभी हज़रत समझ लेना |


 


ये चुप्पी और दिल की धड़कनों का शोर कहता है,


मेरी ख़ामोशियों को तुमसे है निस्बत समझ लेना |


 


किसी चेहरे की रंगत से ही होती है ख़बर सबको,


कभी आकर मुझे देखो मेरी हालत समझ लेना |


 


हैं शिद्दत के ही धागों से बटन मैंने सभी टाँके ,


गुलाबी शर्ट जब पहनो मेरी कुरबत समझ लेना |


 


किसी दिन लौटकर आओगे तुम मेरी ही बाहों में ,


यही मेरी अक़ीदत है यही चाहत समझ लेना |


 


ये काले बादलों का झुंड उड़ता जा रहा है जो


गरज कर जब मिले तुमको किया स्वागत समझ लेना |


 


रज़ा जो कुछ तुम्हारी हो तुम्हें मालूम इतना हो , 


सुमन के ख़्वाब की तुम इक हसीं सूरत समझ लेना |


 


@संगीता श्रीवास्तव सुमन 


 छिंदवाड़ा मप्र


 


 


 


गीतिका. /ग़ज़ल


 


मौत से बढ़कर तेरी फुरक़त होती है,


अब जाना क्या चीज़ मुहब्बत होती है |


 


जानती हूँ अब तू है पराया फिर भी क्यूँ,


दिल को हरदम तेरी चाहत होती है |


 


इश्क़ अगर सच्चा हो तो फिर क्या कहना ,


हुस्न की आख़िरकार इनायत होती है |


 


मिट्टी के घर में होती है ये सीरत ,


सब मिलकर रहते हैं बरक़त होती है |


 


पास रहे तो ध्यान नहीं देता कोई,


दूर रहे तो कितनी क़ीमत होती है |


 


सब पे भरोसा कम करना ही है अच्छा ,


रिश्तों में अक्सर ये दिक्कत होती है |


 


सीधे साधे लोगों को ही हाय 'सुमन' 


सारी उलझन सारी गफ़लत होती है |


 


@


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