काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार श्रीकांत त्रिवेदी ,लखनऊ'  

श्रीकांत त्रिवेदी,


प्रबंधक(से.नि.)


भारतीय स्टेट बैंक,


स्थानीय प्रधान कार्यालय,


लखनऊ,


 


603, पार्क अल्टीमा


सीतापुर रोड,


लखनऊ,


जन्मस्थान महोली,सीतापुर,


कर्मभूमि, अयोध्या


 कविता ,गीत, ग़ज़ल, व्यंग्य,आदि विधाओं में स्वांत: सुखाय लेखन !


दक्षिणपंथी विचारधारा!


मो.7607778640


 


 


 


   


🙏मेरे आराध्य तुम ,तुमको मेरा नमन! 🙏


**********************************


तुम मेरी*आस्था,*


अर्चना के सुमन!


मेरा विश्वास तुम


तुमको मेरा नमन!!


            मेरे आराध्य तुम ,


            तुमको मेरा नमन!


तुम सिया, राम तुम,


राधिका ,कृष्ण तुम ,


गौरि शंकर तुम्हीं,


तुम रमा,विष्णु तुम,


     मेरे आराध्य तुम ,


    तुमको मेरा नमन!!


तुम धरा,तुम गगन!


नीर ,पावक, पवन!


हो तुम्हीं अग्नि भी,


तुमको मेरा नमन!!


     मेरा  संसार  तुम ,


     तुमको मेरा नमन!


सृष्टि भी हो तुम्हीं ,


हां,प्रलय भी तुम्हीं,


जन्म तुमने दिया,


मृत्यु भी हो तुम्हीं!


         मेरे  सर्वस्व  तुम,


        तुमको मेरा नमन!!


मेरे सुख तुमसे ही,


मेरे दुख में तुम्हीं ,


जो मिला है मुझे,


सबके दाता तुम्हीं!


     मेरा अस्तित्व तुम,


     तुमको मेरा नमन !!


सब तुम्हीं ने दिया,


क्या है मेरा किया,


तेरा अर्पण तुम्हें ,


मेरे मन का दिया!


     भाव सारे हो तुम, 


     तुमको मेरा नमन!!


तेरे चरणों में मैं,


मेरी सांसों में तुम,


मेरी आशा तुम्हीं,


मेरा विश्वास तुम !


       लो शरण में मुझे,


       तुमको मेरा नमन!! 


मेरा साधन तुम्हीं,


हो मेरे साध्य भी ,


मेरा अर्चन तुम्हीं,


मेरे आराध्य भी!


      मेरा हर कर्म तुम!


      तुमको मेरा नमन!!


जानता धर्म कुछ,


पर प्रवृत्ति नहीं ,


जानता पाप भी


पर निवृत्ति नहीं,


       मेरा हर मार्ग तुम,


       तुमको मेरा नमन!!


         


         मेरे आराध्य तुम ,


         तुमको मेरा नमन!!


 


 


 


********


कलम आज कुछ ऐसा लिख,


हल्दी घाटी जैसा लिख।


रक्त उबल ही जाए सबका,


अब अंगारों जैसा लिख।।


      कलम आज कुछ ऐसा लिख..


आज कारगिल विजय दिवस पर


सेना  के  इस  शौर्य   दिवस  पर,


रिपु दल दहल जाए जिसको सुन,


सिंह  गर्जना  जैसा   लिख ।।


      कलम आज कुछ ऐसा लिख..


याद कारगिल विजय दिवस कर,


अश्रु  पुष्प  से उन्हें  नमन  कर ,


अर्पण किए शीश जिस मां  पर,


वो  फिर  हंस  दे  वैसा लिख ।।


      कलम आज कुछ ऐसा लिख..


कायर शत्रु सदा से ही है,


घात करे पीछे से ही है ,


छिपता सदा जयद्रथ जैसा,


सूर्य ग्रहण के जैसा लिख।।


      कलम आज कुछ ऐसा लिख....


हाथों की मेहंदी थी रोई,


कंगन,बिछुआ,चूड़ी रोई,


बहुत हो चुका आर्तनाद अब,


दुश्मन बिलखे, ऐसा लिख ।।


      कलम आज कुछ ऐसा लिख....


नयनों में न देख मधुशाला ,


भूल अभी तू साकी ,प्याला।


अभी हलाहल ही पीना है,


शिव के तांडव जैसा लिख।।


      कलम आज कुछ ऐसा लिख..


अभी भूल तू गीत प्रणय के,


स्वर भी भूल विनय अनुनय के।


शत्रु खड़ा है सम्मुख तेरे,


प्रलय घटाओं जैसा लिख।।


      कलम आज कुछ ऐसा लिख..


आज सत्य की राह यही है,


जिएं देश हित चाह यही है।


मरना है तो मरें देश पर ,


शौर्य अमर हो ऐसा लिख।।


      कलम आज कुछ ऐसा लिख..


तू है उन ऋषियों का वंशज,


वज्र बना था जिनका अंशज।


याद अस्थियां कर दधीचि की,


वृत्तासुर वध जैसा लिख ।।


      कलम आज कुछ ऐसा लिख..


वंशी के स्वर को विराम दे,


अभी रास का भुला नाम दे,


आज महाभारत की बेला,


चक्र सुदर्शन जैसा  लिख।।


      कलम आज कुछ ऐसा लिख.


आज शब्द को बाण बना ले,


गीतों  का  तूणीर  बना  ले,


अपने स्वर को धनुष बनाकर,


लक्ष्य वेध के जैसा लिख।।


      कलम आज कुछ ऐसा लिख....


अक्षर अक्षर एक वज्र हो,


हर कवि जैसे एक शक्र हो,


नभ से विद्युत प्रलय आज हो,


अरि दल भस्म बने ऐसा लिख।।


      कलम आज कुछ ऐसा लिख....


 


           श्रीकांत त्रिवेदी


                  लखनऊ


          25 ,07, 2020


 


 


 


  🌸*पर्युषण पर्व* 🌸


नमन मेरा पर्युषण पर्व को,


जैन धर्म के महा पर्व को ,


आज तिलांजलि दे देनी है,


अपने मन में बसे गर्व को !


            नमन मेरा पर्युषण पर्व को,


तन से ,मन से और वचन से,


मेरे कर्म से, मेरे कथन से ,


अगर किसी ने पीड़ा पाई,


क्षमा याचना करूं सर्व को!


           नमन मेरा पर्युषण पर्व को,


मुझसे , जाने, अनजाने में, 


दुख किसी को मिल जाने में,


पाप हुए जो भी उन सबका,


प्रायश्चित इस परम पर्व को!


          नमन मेरा पर्युषण पर्व को,


भले किसी ने बुरा कहा हो,


खुद मैंने अन्याय  सहा हो ,


पर मन में प्रतिशोध न आए,


क्षमा कर सकूं महा गर्व को!


          नमन मेरा पर्युषण पर्व को,


          जैन धर्म  के महा पर्व को!!


 


श्रीकांत त्रिवेदी


लखनऊ


7697778640


 


 


         ****शिक्षक****       


मैं कच्ची मिट्टी जैसा था ,


जब मुझे एक आकार दिया,


या तो कोरा कागज सा था,


जिस पर हर  शब्द उभार दिया,


माँ मेरी पहली शिक्षक थी,


जिसने ही यह संसार दिया ! 


यह जीवन मुझे उधार दिया।।


 


पिता बाद में जाना हमने,


सब कुछ है वो माना हमने,


जीवन जीने की शिक्षा दी,


तब जग को पहचाना हमने,


इस जीवन का नैपुण्य दिया! 


फिर रण में मुझे उतार दिया!!


 


सदा ज्ञान की भिक्षा देकर , 


बहु आयामी  शिक्षा  देकर,


वंदन उन्हीं शिक्षकों का कर,


दे निज आशीषों का शुभ वर,


ये यश,वैभव सब दान दिया!


फिर जीवन पुष्प निखार दिया!


 


ज्ञान अभी तक रहा अधूरा,


मन व्याकुल ,कैसे हो पूरा ,


सच्चे गुरु की दीक्षा पाकर


मन पर रहे नियंत्रण पूरा,


तो प्रभु ने उपकार किया!


उस भवसागर से तार दिया!!


 


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