काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार मुक्ता तैलंग, बीकानेर

 


परिचय


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 मुक्ता तैलंग 


पिता का नाम- गजानंद राव तैलंग 


जन्म- 10 जुलाई 1969 भोपाल मध्य प्रदेश। 


शैक्षणिक योग्यता m.a. हिंदी/ m.a. संस्कृत/ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन।        


वरिष्ठ अध्यापिका संस्कृत। मास्टर ट्रेनर, 


शोधार्थी (11 से अधिक शैक्षिक शोध) 


ऑल इंडिया रेडियो कंपेयर 1995 से लगातार। 


लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार,     


1988 से 1995 तक आकाशवाणी बीकानेर से काव्य-पाठ का प्रसारण। 


1988 से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं (भास्कर, पत्रिका, युगपक्ष, राष्ट्रदूत, लोकमत, हनी-मनी, कर्मशीला, शिविरा, शुभिका एवं स्थानीय अखबारों ) आदि में लेख, कविता, कहानी प्रकाशन।    


10 से अधिक मौलिक पुस्तकों का लेखन। भूमिका एवं पुस्तक समीक्षा। 


मंचों से कविता पाठ। 


पता -- 7- द -34 पवनपुरी दक्षिण विस्तार बीकानेर। राजस्थान ।334001 


मोबाइल 9829361964. ≠==============


 


 राज़ रहने दो। ------------------------------ 


छुपे है राज़ जितने दिल में,


उनको राज़ रहने दो।


गुज़ारिश है मेरी तुमसे,


ये तोहमत आज रहने दो।।


 


सच को सच कहने की, 


जल्दी में हो क्यूं इतने।


जुबां हक़ में ज़रा खोली, 


कहा आवाज़ रहने दो।।


 


हौसलों के जब खुले पर, 


नापने को आसमां।


वो पर काट कर बोले,  


बस परवाज़ रहने दो।।


 


रश्क तो हमको बहुत है, 


तराशे कोहिनूरों पर।


जहां चाहो वहां चमको, 


मगर यह ताज रहने दो।।


 


सुनेगा आसमां वाला, 


तो पूरी ख्वाहिशें होंगी।


मिलेगी तुमको ये दौलत, 


अभी सरताज रहने दो।।


 


इबारत झूठ सच सारी, 


आंखों में पढ़ी सबने।


तकलीफ ए जुबां छोड़ो,


ये अल्फाज़ रहने दो।। 


 


छुपे है राज जितने दिल में,


उनको राज़ रहने दो।


गुजारिश है मेरी तुमसे,


ये तोहमत आज रहने दो।।


   


                         


  रोटियां। ------------------------------ 


आदमी की भूख को छलती हैं रोटियां। 


वादों की तसल्ली की बनती है रोटियां।।  


 


परवाह नहीं घर के चूल्हे की किसी को।


अब चिता की आग पे सिकती है रोटियां।।


 


चीखती चिल्लाती सी दिखती हैं हसरतें।


जब कभी अचानक जलती है रोटियां।‌।


 


मिलनी तो चाहिए ये सबके हक की बात है।             


कुछ खास कीमतों पर बिकती है रोटियां।।


 


उम्र भर हम्माली का हासिल सिफ़र रहा।


किस जमीं किस पेड़ पर फलती हैं रोटियां।।


 


  - मुक्ता तैलंग,बीकानेर. =============== 


                                                       समाज के जिस्म पे नासूर ना ये फोड़े होते।


कुछ बे लगाम घोड़े इतने भी ना दौड़े होते। 


 


उनकी ज़ुबां खुलती न टापों से दहलते दिल।


साइसों के हाथ में उस वक्त जो कोड़े होते।।


 


हवा में ना जहर होता बाकी ना प्यास रहती।


रुख़ यूं ज़लज़लों के इस ओर न मोड़ें होते।।


 


ये नफरत की आंधियां जो सांसों में है तुम्हारी।


बस्तियां न लुटती गर दिल से दिल जोड़े होते।।


 


ये चीखो पुकार सारी दहशत का नतीजा है।


रोते न बि्लबिलाते घर तुमने न तोड़ें होते।।


 


जो दर्द दूसरों का भी दिल में तुम्हारे होता।


इकतरफा धाराओं के संदर्भ ना जोड़े होते।।


 


पट्टी पढ़ानी कौन सी अब रह गई है बाकी।


न नींव खोदते तुम न हम राह के रोड़े होते।।


 


-मुक्ता तैलंग, बीकानेर। ===============


                                                            कौन परवाह करे ज़माने की।


हमें तो आदत है मुस्कुराने की।।


 


लोग जो आपको नहीं समझें।


क्या ज़रूरत उन्हें समझाने की।।


 


वो अकीदत पे वार करके भी।


ख्वाहिशें रख रहे भुलाने की।।


 


आज उल्फत पे लोग हंसते हैं।


ये भी एक चीज है भुनाने की।।


 


छोड़ भी दीजिए बुरी आदत। 


टूटे रिश्तों को आजमाने की।।


 


ये बारिशें भी अब तेज़ाब हैं।


कोशिशें है तुम्हें जलाने की।।


 


लेके हक़ की मशाल फिरता है।


कौन सुनता है इस दीवाने की।।


    


         -मुक्ता तैलंग, बीकानेर।


 


चेहरे पे चेहरा लगा लीजिएगा।


बातें भी थोड़ी बना लीजिएगा।। 


 


कीमत कहां है सच्चाईयों की।


अच्छाईयों को दबा लीजिएगा।। 


 


बातों में मिश्री सी तुम घोले रखना।


अश्कबार आंखें चुरा लीजिएगा।। 


 


लगी आग घर में बुझानी तो होगी। 


जल जाए दामन जला लीजिएगा।।


 


अपनों को सब कुछ बताने से पहले।


कुछ खास बातें छुपा लीजिएगा।‌।


 


छोड़ो भी दुनिया के रिश्ते निभाना।


बदले में किस से वफ़ा लीजिएगा।।  


 


खुद की मुसीबत ही टलती नहीं है। 


किस-किस की सर पे बला लीजिएगा।।


 


नाहक क्यों खुद को परेशान करना। 


जां बाकी है जब तक मजा लीजिएगा।।


 


पाबंदियों के भी दोहरे है तेवर।


चल जाए जैसे चला लीजिएगा।।


 


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