नाम –स्वर्ण ज्योति
शिक्ष - एम ए अर्थ शास्त्र और एम ए हिंदी साहित्य
डिप्लोमा इन सृजनात्मक लेखन, रेडियो लेखन
मातृ भाषा – कन्नड़
• मैं स्वर्ण ज्योति पॉण्ड़िचेरी से अपना परिचय प्रेषित कर रही हूं
• मेरी मातृ भाषा कन्नड़ है लेकिन मैं हिंदी में कार्य करती हूं ।
• किसी सरकारी संस्था या शिक्षण संस्था से नहीं जुड़ी हूं केवल हिंदी से जुड़ी हूँ ।
• पिछले 25-28 वर्षों से पॉण्डिचेरी में हिंदी के प्रचार-प्रसार में कार्यरत हूँ।
• जब आम जनता से हिंदी जुड़ेगी तभी हिंदी देश की भाषा बन सकेगी ऐसा मेरा विश्वास है ।
• हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए मुझे पॉण्ड़िचेरी के उप राज्यपाल ड़ॉ किरण बेदी से दो बार सम्मानित होने का गौरव प्रप्त हुआ है ।
• इसी संदर्भ में उत्तर प्रदेश के कला एवं सांस्कृतिक मंत्री से भी सम्मान प्रप्त हुआ है ।
• भारत उत्थान न्यास के द्वारा " उत्तर और दक्षिण के मध्य सेतु" की उपाधि से नवाजा गया है ।
• हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु लगभग 20 से भी अधिक सम्मानों से सम्मानित किया गया है ।
• साथ ही कर्नाटक के कई संस्थाओं के द्वारा कन्नड़ भाषा में श्रेष्ठ कार्य के लिए सम्मनित किया गया है ।
• कर्नाटक के राज्यपाल जी के द्वारा , आठवीं सदी में लिखित एक अंक काव्य जिसका मैंने हिंदी में अनुवाद किया , के लिए सम्मानित हुई।
• मेरी स्वरचित तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक कहानी संग्रह है ।
• एक उपन्यास प्रकाशाधीन है
• इसके साथ ही विभिन्न विषयों पर लगभग आठ अनुदित पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं ।
• मृदुला सिन्हा द्वारा लिखित परितप्त लंकेशवरी का कन्नड़ में अनुवाद किया जो बहुत चर्चित रहा ।
• साथ ही देश भर की अनेक संस्थाओं में एवं राष्ट्रीय एवं अंतर र्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में मुख्य वक्ता के रूप में पॉण्ड़िचेरी का प्रतिनिधित्व किया।
• आगरा एवं वृंदावन में हुई अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में मेरा व्यक्तव्य बहुत चर्चित रहा हुई जिसे फेसबुक एवं अनेक स्थानीय टी.वी. चैनलों से प्रसारित भी किया गया।
• साहित्य के साथ –साथ मेरा रुझान समाज सेवा की ओर भी रहा है । इसी संदर्भ में मैं एक वृद्धाश्रम में तथा अंधाश्रम में स्वयं सेवी के रूप में कार्य करती हूँ।
• साथ ही बेंगलुरु में आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों के बच्चों के लिए एक निःशुल्क विद्यालय भी चलाती हूँ।
• इस प्रकार हिंदी, कन्नड़ और तमिल के बीच में तालमेल करते हुए मैं अपनी साहित्यिक यात्रा में निरंतर आगे बढ़ रही हूँ।
Swarna jyothi
#30, 1st floor, 1st cross
Brindawan
Saram post
Pondicherry
605613
आज के सम्मानित रचनाकार कौलम हेतु
1. साजन का दीदार
बैचेन हो जाती हूँ बार बार
याद आता है जब तेरा प्यार
प्यारे प्यारे सब यादों के तार
पल भर में हो जाते हैं साकार
जब मैं रूठूं तुम करते मनुहार
कितना सुख मिलता प्रिय भरतार
अब न कर सकूँ स्वागत न सत्कार
कि तुम मथुरा मैं रह गई उस पार
पा न सकहुँ तेरा कोई समाचार
विरह वेदना की पड़ी है बड़ी मार
मिल आती गर मिलते पंख उधार
कर आती सखी साजन का दीदार
स्वर्ण जयोति
2. साँचा बंधन
सतवर्णी रंगों से सज कर
जब प्रियतम तेरी प्रीत खिले
राग अनुराग भाव अनुभाव
सब जीवन ज्योति को मिले...
अधखुले नयन मद से भरे
लरजते अधर रस से भरे
गोल कपोल लाल लाज भरे
हुलस के हिय हिलोर करे
न पंडित न वेदी न फेरे
मंत्र न सिंदूर भाल मेरे
बांधा साँचा बंधन तुझ्से
सजन वचन भी न चाहूं तेरे
देह का रखूं न मान
मन- सम्मिलन को दिया मान
तुझमे ही समा जाऊंगी
चाहे रहे या जाए प्राण
स्वर्ण ज्योति
3. हम होंगे
अक्षरों और शब्दों से बने वाक्य होंगे
बोलों और धुनों से सजे गीत होंगे
तेरे-मेरे बीच बंधे सब बन्धन
समय के पन्नों पर अंकित होंगे
हर तरफ खूबसूरत फ़िज़ा होगी
दिल के साज़ पर गूंजती सदा होगी
तेरे-मेरे प्यार का चाहे जो हो अंजाम
मोहब्बत की दास्तां हमेशा जवां होगी
तुझसे बिछड़ जाऊं इसका ग़म तो होगा
पर मेरे बाद मेरी वफाओं का संग होगा
तेरी मुस्कुराहट का वही गज़ब ढंग होगा
कि मेरे प्यार का उसमें घुला गहरा रंग होगा
ज़मी से फ़लक तक तेरा नाम होगा
मेरी भी यादों का पैग़ाम होगा
जाने वो कैसा मुक़ाम होगा
जब ज़मी पर फिर आशियाँ न होगा
कि तेरे-मेरे बीच बंधे सब बन्धन
समय के पन्नों पर अंकित होंगे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें