कोरोना की आत्मकथा अर्चना शुक्ला


जब मैं भारत आया तो मेरा यहाँ भारतीय संस्कारों के साथ बहुत स्वागत हुआ | जब भी मैं किसी के घर जाकर किसी सदस्य को अपने गिरफ्त में ले लेता तो बाकायदा मेरी अगवानी के लिए पूरी गाड़ी आती साथ में श्वेत वस्त्रों से सजे चार पांच लोग होते | मुझे अच्छे से अच्छे हस्पताल में ले जाया जाता| हस्पताल का पूरा स्टाफ मिलकर नाचता और मेरा मनोरंजन किया जाता| मेरे ऊपर कई गाने भी बनाये गये | मेरे ऊपर साक्षात्कार लिए गये | मेरे आगमन की ख़ुशी में देश भर में दीवाली के उत्सव जैसा माहोल हो गया था | थालियाँ बजाई गयीं ,दीपक जलाये गये | घर घर में पकवान बन रहे थे | नयी नयी गतिविधियाँ चल रहीं थी| मैं अपनेआप पर फूला नहीं समा रहा था | बहुत खुश था मैं भारत आकर |


जब लोग हस्पताल से वापस जाते तो उनका स्वागत फूलों और तालियों से होता मैं तो अपनी प्रसिद्धि पर इतरा रहा था | पूरा घर अब साथ मिलकर रहता था | आपस में सुख दुःख बंटने लगे थे |नदियाँ ,नाले ,हवा सब कुछ स्वक्ष हो गये थे | लोग अपने पुराने संस्कारो में वापस आ गये थे | कुछ लोग तो मेरी तारीफ़ भी कर रहे थे की मेरे आने से उनकी जिन्दगी में बदलाव आया है| कुछ लोगों ने तकनीकी कुशलता भी हांसिल कर ली थी| कुछ का कहना था की मेरी वजह से वो दो पल परिवार के साथ चैन से बैठ पा रहे हैं | घर घर सा लगता है ,बच्चे भी आकर अब साथ बैठते थे| 


पर धीरे धीरे सब कुछ बदलने लगा है | अब मुझे पहले जैसी इज्ज़त नहीं मिलती| जिस घर में जाओ लोग मुंह बनाए लगते हैं | बाहर वालों को तो छोड़ दो घर वाले ही परायों जैसा व्यवहार करने लगते हैं | मुझे अलग थलग दल दिया जाता है | हस्पताल वाले जो पहले मेरे आगमन की सूचना सुनते ही अगवानी के लिए दोड़े- दोड़े आते थे ,मेरा अतिथि जैसा सम्मान किया जाता था ,अब मैं खुद 


जाता हूँ तो भी लम्बी लम्बी लाइनों मैं लगना पड़ता है| इधर से उधर सिफारिश लगाकर फोन मिलाओ तो वो पहले तो फ़ोन उठाते ही नहीं है, अगर भूल से उठा भी लिया तो कहते हैं घर मैं ही पड़े रहो ,अगर सांसे ऊपर नीचे होने लगें तब फ़ोन करना 


अब आप ही बताइए पहले मैं दूल्हे के जीजा की तरह इतराया इतराया घूमता था और अब मेरी इज्ज़त धोबी के कुत्ते जैसी हो गयी है | 


नौबत तो यहाँ तक पहुँच गयी है की लोग मेरे सामने ही बोल देते हैं, पता नहीं ये बवाल कब जायेगा| मिष्ठान तो छोड़िये साहब ये लोग तो मुझे काढ़ा पिला पिलाकर मारना चाहते हैं| दिनरात कोसते रहते हैं |कई लोग तो मेरे साथ -साथ मैं जिस देश से आया हूँ उसको भी भला बुरा कहते हैं| ये बेईज्जती मैं कब तक बर्दाश्त करूँ | मेरी तो कोई बात नहीं अपने देश का अपमान कैसे सहन करूँ |अब थक चूका हूँ,इनलोगों के तिरस्कार से |सोच रहा हूँ अब वापस ही चला जाऊँ,जहाँ से आया था कम से कम वो मेरा अपना देश तो होगा | 


अर्चना शुक्ला


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