शक्ति इतनी माँगती हूँ
राग शोषण के जला दूँ,
द्वैष अन्तर के मिटा दूँ,
दर्द मानव का निगल कर,
धार अमृत की पिला दूँ।
शक्ति इतनी माँगती हूँ।
पंथ भूलों को दिखा दूँ,
शूल राहों के मिटा दूँ ,
नेह की गंगा बहाकर,
फूल शान्ति के खिला दूँ।
शक्ति इतनी माँगती हूँ ।
रक्त में कर्तव्य घोलूँ,
विश्व शांति की बात बोलूँ,
निज हृदय कंचन कलश से,
शान्ति का अमृत उड़ेलूँ ।
शक्ति इतनी माँगती हूँ।
कुमकुम पंकज
जिला गोण्डा
उ.प्र.
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