मदन मोहन शर्मा सजल

ज्ञान का भंडार गुरु, तम प्रतिकार गुरु


जीवन निखरता है, ज्ञानी जन जानते।


 


गुरु कुम्भकार जैसा, गुरु चित्रकार जैसा


माटी को बनाता सोना, वेद पहचानते।


 


गुरु शब्द वेद वाणी, राम कृष्ण ने बखानी


तारे भवसागर से, ऋषि सन्त मानते।


 


सत्य राह दिखलाए, प्रीत प्यार सिखलाये


बिन गुरु जीव पशु, जगत विचरते।


 


सूरज प्रकाश गुरु, सागर मिठास गुरु


प्रकृति का कण-कण, नींद में पुकारते।


 


मीठा जल स्त्रोत गुरु, तमस की मौत गुरु


दिशाओं की दिशा गुरु, देवता उच्चारते।


 


कर्म धर्म शिक्षा देते, नहीं कभी कुछ लेते


नाव पतवार गुरु, किनारे उतारते।


 


गुरु का सम्मान करो, मत अपमान करो


गुरु बिन ज्ञान नहीं, ग्रंथ भी बखानते।


 


आदि और अंत गुरु, प्रलय निर्माण गुरु


राष्ट्र का प्रणेता गुरु, पातक मिटाता है।


 


करोगे जो अपमान, निश्चित पतन मान


सबसे बड़ा है गुरु, ईश से मिलाता है।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा 'सजल'


कोटा (राजस्थान)


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...